जो सामने नदी हो
तो अधर पे प्यास भी हो
न उधार की ख़ुशी हो
सचमुच की ज़िन्दगी हो
हर दिल में हर ज़ेहन में
फूलों की ताज़गी हो
है माँ की बस ये कोशिश
रिश्तों में रोशनी हो
न भले हो चाँद नभ में
पहलू में चाँदनी हो
हो उम्र चाहे छोटी
पर ज़िन्दगी बड़ी हो
कुछ पास हो न मेरे
लेकिन ये शायरी हो
-धर्मेन्द्र गुप्त
के 3/10 ए. माँ शीतला भवन,
गायघाट, वाराणसी