हृदय दुखों से भरा है
मन भी बड़ा बेचैन है
प्रकृति की सुगंधित हवाएं
ओझल हो रही है आंखों से
फिर भी हम मौन हैं।
मैली हो रही है धरती
हृदय फट रहा आसमान का
ओझल हो रही रंग बिरंगी तितलियां
बचपन बीत रहा उदासीन
फिर भी हम मौन हैं।
कटते छंटते विलुप्त हो रहे वन
चूर चूर हो लूट रहे पहाड़
ओझल हुई गोरैयों की टोली
विलुप्त हो रहे चीते, बाघ
फिर भी हम मौन हैं।
ओझल हो रहे हिरण सारे
दुर्लभ हो गये मयूर
ओझल हुआ हाथियों का झुंड
ओझल हो गये सियार
फिर भी हम मौन हैं।
सूर्य तपिश से तिलमिलाकर
सूख रहे तालाब सारे
ओझल हो गये थेथर
सुख गई बोकारो, दामोदर
ओझल हो गये जल धार
फिर भी हम मौन हैं।
ओझल हो गया बाबाक पैना
दुर्लभ हुआ ढेकी वाला हैंड़सार
लौरी सिलौट सुकुमार बना है
ओझल हो रहे चटनी के शौक
फिर भी हम मौन हैं।
ओझल हो रहा लहलहाता सिंदवार
ओझल हुआ कोरैया फुल
पथिया को प्लास्टिक ने लूटा
ओझल वन से मौना साग
फिर भी हम मौन हैं।
हृदय दुखों से भरा है
मन भी बड़ा बेचैन है
खो गये वो स्वप्न हमारे
जो पुरखों के रहे रैन हैं
फिर भी हम मौन हैं।
गुलांचो कुमारी
माध्यमिक शिक्षिका
हजारीबाग ,झारखंड।