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पानी

पानी किसी की नहीं सुनता

वह किसी की

व्यथा नहीं देखता

वह सिर्फ बहता है

बहते-बहते

चला जाता है

वहाँ तक

जहाँ हम सोच

नहीं सकते हैं

वह उम्मीदों पर

पानी फेर देता है

सब्र का बाँध

तोड़ देता है

आदमी को पानी-पानी

कर देता है

आँख का

पानी मार देता है

यहाँ तक कि

आठ-आठ

आँसू रूला भी

देता है!

-कुमार पवन कुमार ‘पवन’

असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग

 कमला नेहरू भौतिक एवं सामाजिक विज्ञान संस्थान

 सुलतानपुर, (उ० प्र०)