नैतिकता की परछाईं हैं मेरे पिता,
अनगिनत दुख-शोक-व्याधि झेलकर
बने नीलकण्ठ विषपायी हैं मेरे पिता।
पितृहीन होकर किशोरवय में ही अपने
देखे थे जिन्होंने टूटते मन के कई सपने,
पारिवारिक उपेक्षाओं के बीच पल-बढ़कर
स्वनिर्मित और सफल व्यक्तित्व हैं मेरे पिता।
सभ्य-सुशिक्षित और सुविचारों से परिपूर्ण,
संपूर्ण-क्रांति के सेनानी बनकर हुए निपुण
समाजसेवा और राजनीति की अभिरुचि वाले
स्वतंत्रता सेनानी के सुयोग्य पुत्र हैं मेरे पिता।
वे वरीय लोक अभियोजक और अधिवक्ता हैं,
एक कृषक समान हैं श्रमी, ओजस्वी वक्ता हैं
रहे हैं सामाजिक समरसता के पक्षधर सदैव,
हर समाज में प्रतिष्ठित अतएव हैं मेरे पिता।
उदात्त चरित्र का जिनमें सदा उत्कर्ष रहा है,
जिनका जीवन-सारांश सतत् संघर्ष रहा है,
पुत्र, पति और पिता तीनों रुपों में श्रेष्ठ हैं,
सर्वश्रेष्ठ पितामह रुप में किन्तु हैं मेरे पिता।
जिसे बेबाक सच कहने का साहस रहा हो,
किसी दुर्जन से भी न जो एक पल डरा हो,
विघ्न-बाधाओं में रहा अविचल खड़ा हो,
अद्भुत जुझारू वह लौहपुरुष हैं मेरे पिता।
बिकाऊ बनते तो धन उन पर बरसते,
भ्रष्टाचारी भी देखकर उनको तरसते
धनलोलुपता के मगर कभी पीछे न भागे,
सचमुच ही ऐसे सदाचारी हैं मेरे पिता।
प्रकृति से प्रेम उनको अत्यधिक है,
बागवानी में मन कुछ लगता अधिक है
अहर्निश स्वच्छ अपने परिवेश को रखने वाले
अघोषित एक दैनिक कर्मचारी हैं मेरे पिता।
पंडारक (पटना)