लाडली बेटी हो गई सयानी।
दिन गए खेलने कूदने सोने के,
अब छूट जाएंगे दिन बचपन के।।
पिता ढूंढे नेक वर,
द्वारे-द्वारे देता दस्तक।
मां निहारे रस्ता दिन भर,
आ गया कन्यादान का वक्त।।
बेटी का करके कन्यादान,
पिता ने रस्म निभाया महान।
खुशियों के फूल बरसे हजार
पिता के जीवन का आज दिन है खास।।
पिता रोता देता यही दुआएं,
बेटी खुश रहना न करना गम।
सबका रखना ध्यान,
तुम हो हमारा अभिमान।।
कन्यादान करने के बाद?
बेटी है आंखो का तारा,फिर
क्यों खत्म हो जाता बेटी का अधिकार?
पिता करता है बलिदान, दान,
लेने वाला हो जाता है कर्जदार।
फिर भी गुरूर दिखाता है,
अपमान के घूंट पिलाता है।।
जिसने न कभी किया हो कन्यादान,
वह क्या जाने नम आंखो की परिभाषा?
तुम भी ऋणमुक्त, बन सकते हो महान
गर दे दो पिता को मान,बेटी को सम्मान।।
कन्यादान है एक महान दान,
एक दूजे का करें सम्मान।
बेटी का नही खत्म होता अधिकार,
यह रस्म है एक जीवन का आधार।।
-प्रियंका पांडेय त्रिपाठी
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश