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बहुत पछताना होगा

 आँखों के ख़्वाब अनूठे हैं,

पर दुःख है आज भी वह अधूरे हैं,

देख रही हैं आँखें स्वप्न बड़ा,

 किंतु सामने दिखता क्रूर खड़ा,

 

छोटी-सी नन्ही गुड़िया को, 

कोई भी अब कभी ना मार सके,

हर आँगन में बेटे के संग-संग,

 बेटी भी किलकारी मार सके,

 

फर्क नहीं है बेटे और बेटी में कोई,

 दोनों प्रभु का वरदान हैं,

जितने बेटे हैं धरती पर, 

उतनी ही बेटियों का भी तो स्थान है,

 

पाप के भागीदार हैं वे, 

जिन्होंने बेटियों का गला घोंटा होगा,

तरसेंगे पुत्रवधू के लिए, 

हाथ में उनके भीख का कटोरा होगा,

 

क्या जानते नहीं थे, 

बेटी बिन कोई परिवार आबाद नहीं होता,

बेटा चाहिए वंश बढ़ाने को, 

नारी बिन उसका जन्म नहीं होता,

 

बेटा चाहने वालों को,

 सर्वप्रथम बेटी को घर में लाना होगा,

उसके ग्रह प्रवेश के पश्चात,

 बेटे के प्रवेश का ठिकाना होगा,

 

आने वाले संकट से बचना है तो,

 बेटियों को बचाना ही होगा,

अभी भी संभल जाओ,

 वरना बाद में सभी को पछताना होगा,

 

तो हर नन्ही गुड़िया को,

 जीने का जब पूरा अधिकार मिलेगा,

सपना तभी साकार बनेगा,

 वरना संकट में यह संसार घिरेगा।

 

-रत्ना पाण्डेय

वडोदरा, गुजरात