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संस्कृति की सुवास

            15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है । इस अवसर पर छत्तीसगढ़ में आयोजित हुए तीन दिवसीय आदिवासी नृत्य महोत्सव को याद कर रहा  हूँ | अंतरराष्ट्रीय आदिवासी नृत्य- महोत्सव  के  मंच से  पारंपरिक जनजातीय सभ्यता, संस्कृति परंपराओं को  करीब से जानने और समझने काअवसर मुझे मिला। सच कहूँ तो, इतनी आदिम जानकारी मुझे तीस वर्षों में जनजातीय संस्कृति के इतिहास और परंपराओं को खंगालने के बाद भी नहीं मिली थी ।

7 देशों , भारत के 27 राज्यों एवं 6 केंद्र शासित प्रदेशों के कलाकारों ने जब साइंस कॉलेज मैदान पर मार्च पास्ट किया तो ऐसा लगा जैसे पूरे विश्व की जनजातीय  संस्कृति,  छत्तीसगढ़ की धरती पर उतर आई हो  । पूरे भारतवर्ष में केवल छत्तीसगढ़ में ही जनजातीय संस्कृति के इस अंतरराष्ट्रीय समागम की विशेषता को देखते हुए सांसद राहुल गांधी ने भी बधाई संदेश भेजकर छत्तीसगढ़ सरकार का हौसला बुलंद किया और छत्तीसगढ़ सरकार की आदिवासी संस्कृति, कला को पोषित करने की कोशिश की सराहना की। उन्होंने कहा- "छत्तीसगढ़ सरकार -के इस पहल से आदिवासी कला संस्कृति को संवर्धन  मिल रहा है। "

  इस  महोत्सव के शानदार आगाज से अभिभूत   होकर मुख्यमंत्री ने सधे हुए एंकर की तरह महोत्सव के मुख्य अतिथि एवं झारखंड के मुख्यमंत्री  हेमंत सोरेन से जब पूछा कि ''हमारा छत्तीसगढ़ आपको कैसा लगा? ''तो उन्होंने कहा, ''मुझे तो लग रहा है कि मैं झारखंड में  ही  हूँ | छत्तीसगढ़ सरकार अपने प्रदेश के आदिवासी समुदाय  की आर्थिक पिछड़ापन को दूर करने के लिए बहुत बेहतर काम कर रही है ।''उन्होंने आशा व्यक्त की कि सदियों से उपेक्षित जनजातियों को इस आयोजन से एक नई पहचान मिल सकेगी।

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में विदेशी कलाकारों के आने से छत्तीसगढ़ वैश्विक स्तर पर चर्चित हुआ। विदेशी कलाकारों में नाइजीरिया ,फिलीस्तीन,युगांडा, श्रीलंका,उज्बेकिस्तान, स्वाजीलैंड,माली,के आदिवासी कलाकारों ने अपने अपने देश के जनजाति संस्कृति ,पर्व से संबंधित  विधाओ और पंरपराओ को प्रस्तुत कर कार्यक्रम को और ऊंचाइयां प्रदान की। छत्तीसगढ़ की  माटी को नई पहचान  दी  । ऐसे आयोजन से जनजाति समाज को एक नई दिशा, ताकत एवं प्रोत्साहन मिलता है।

यह सच है कि आदिवासी नृत्य महोत्सव के माध्यम से सरकार ने आदिवासियों को सम्मान देने की एक स्वस्थ परंपरा शुरू की है ।

इसके माध्यम से देश विदेश की जनजातियो की संस्कृति को समझने का अवसर मिलता है एवं नई पहचान के साथ कलाकारों को भी प्रोत्साहन मिलता है ।

आदिवासी बाहुल्य जिला कोरिया  के विविध  जन जातीय परंपराओं एवं संस्कृति के करीब मै पिछले तीस वर्षों से जुड़ा हुआ हूँ  । कई  विशेष जनजातियो  के प्रकृति से जुड़ी परंपराओं को एवं उनकी संस्कृति को समझने के लिए कोरिया के बोडेमुड़ा जैसे  आदिवासी गोड़ एवं विशेष बैगा जनजातियों की बस्तियों में भी  मैने छह माह  गुजारा है। पर एक ही मंच पर देश विदेश  की विविध लोक कला एवं संस्कृतियों से सहजता से परिचित होने का यह मेरा पहला अवसर था ।

  रायपुर में 28 से 30 अक्टूबर तक संपन्न    अंतरराष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव महज एक मनोरंजन एवं रोमांच का  ही दस्तक नहीं था, बल्कि इन जनजातियों का प्रकृति,जल, जंगल, जमीन के साथ आत्मीय रिश्ता एवं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में इनके आदिम सोच को जनमानस तक पहुंचाने का एक सरस माध्यम था।

 या कहें  कि-आदिवासियों के पारंपरिक त्यौहार, अनुष्ठान  फसल कटाई, कृषि  आपसी रिश्तों एवं अन्य पारंपरिक विधाओं  को समझने के लिए यह एक साझा  और जीवंत मंच था।

उत्तर प्रदेश, बिहार के कलाकारों के साथ जब छत्तीसगढ़ के कलाकारों ने अपने पारंपरिक करमा नृत्य की प्रस्तुति दी तो लोगों को छत्तीसगढ़वासियों को अपनी माटी की सांस्कृतिक महक का आभास हुआ। बिहार   लोक नर्तक दल का मयूरपंख नृत्य, उत्तरप्रदेश के कलाकारों के करमा नृत्य में वृक्षों की पूजा, पुरुषों एवं स्त्रियों द्वारा ढोल और तालियों की सुंदरता,  वृक्ष की परिक्रमा ,वन संपदा और प्रकृति से जुड़े मनोभाव को धरती माता एवं प्रकृति के पंच तत्वों की  महत्ता, एवं अपने आराध्य की पूजा,उनके पारंपरिक परिधान,जन मानस को प्रकृति का संरक्षण संदेश देते नजर आए। वहीँ अंतरराष्ट्रीय कलाकारों द्वारा आकर्षक बहुरंगी छटा  देखने को मिली,। उज़्बेकिस्तान न्यूजीलैंड ,श्रीलंका और युगांडा सहित देश के विभिन्न राज्यों के नृत्य की अनुशासित एवं सजी हुई मनोरंजक प्रस्तुति जब नजर के सामने आई तो मैंने  सोचा भी नहीं था  कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में  कभी विश्व के इन देशो के  ऐसे आदिवासी नृत्य देखने का अवसर मिलेगा।

इस डांस  फेस्टिवल में मनोरंजन यही कारण था। इस आदिवासी नृत्य महोत्सव में शुभारंभ के अवसर पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बतौर मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए एवं देश-विदेश के विभिन्न आदिवासी कलाकारों के रंगारंग कार्यक्रम को देखकर भाव विभोर हो उठे । उन्होंने अपने संबोधन में कहा - छत्तीसगढ़ पूरे देश में ऐसा राज्य है  जहां पर  ऐसा अद्भुत आयोजन हो रहा है जो अकल्पनीय है।

  सीएम सोरेन ने भूपेश बघेल को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री शोषित  आदिवासियों को  सम्मान देने  एवं उन्हे बराबर का दर्जा देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा में जोड़ रहे  हैं । देश के 27 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों के कलाकारों के साथ 7 देशों में नाइजीरिया, उज्बेकिस्तान ,श्रीलंका, युगांडा ,सूजी लैंड मालदीप, वैलेंटाइन और सीरिया से आए विदेशी कलाकारो ने छत्तीसगढ़ राज्य को खूब पसंद किया। आदिवासी कलाकारों ने मुक्त कंठ से छत्तीसगढ़ शासन की सराहना की। अपनी कला के प्रदर्शन के दौरान कलाकारों में भारी उत्साह देखा गया।

  राजस्थान के कलाकारों से मैं व्यक्तिगत रूप से मिला । छत्तीसगढ़ आकर वे बेहद खुश एवं उत्साहित नजर आये । राजस्थान के  एक कलाकार ने कहा -जीवन में पहली बार इतना सम्मान, मुझको मिला यह मेरे जीवन के सबसे अद्भुत पल है । आदिवासी समाज से आने वाले झारखंड  सीएम हेमंत सोरेन ने  भी कहा कि ''मैं स्वयं आदिवासी समाज से आता हूं और वास्तव में आदिवासियों के सामने चुनौती काफी गहरी होती  है । आज मुझे मुख्य अतिथि के रूप में मुझे आने का मौका मिला है और यदि मैं मुख्य अतिथि नहीं भी होता, तो छत्तीसगढ़ की जनजाति समाज के बीच  छत्तीसगढ़ जरूर आता । उन्होंने  कहा कि इस कार्यक्रम से आदिवासी जनजातियों को एक विशेष प्रोत्साहन मिला है "। इस बात का समर्थन करते हुए मैं भी एक कहना चाहता हूं कि -आदिवासियों के उत्थान में सचमुच यह सरकार प्रतिबद्ध है ,-गोधन न्याय  योजना  या  नरवा,गरवा, घुरवा, बाड़ी, भूमिहीनो के लिए  न्याय योजना, हाट बाजार क्लीनिक ,आदिवासी समाज के क्रांतिवीर झाड़ा सिरहा के नाम पर इंजीनियरिंग महाविद्यालय  धरमपुरा  की घोषणा  आदि निर्णय से जनजाति वर्ग से निकट का रिश्ता रखने वाले राज्य के मुखिया का चेहरा सामने आता है। आदिवासियों के उत्थान के लिए, उनको आर्थिक   मजबूती प्रदान करने के लिए एवं जमीन से जुड़ी तमाम   संचालित सरकारी योजनाओं से छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को विशेष संबल मिला है, वहीं  इनके मान सम्मान को एक नई पहचान भी मिली  है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  की यह दूरदर्शी सोच का ही परिणाम था  कोरोना काल में जब पूरे देश में मंदी छाई हुई थी तब छत्तीसगढ़ के बाजार गुलजार  था । दो रुपए गोबर खरीदने वाला छत्तीसगढ़ राज्य  देश का पहला राज्य है ।  आदिवासी संस्कृति से जुडे इन राज्यों से आए कलाकारों ने मुक्त कंठ से यह कहा कि -हम छत्तीसगढ़ आकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। इस महोत्सव में विविध रंग देखने को मिले। उत्तराखंड के , थारू समुदाय का -झीझीहन्ना  लोक नृत्य ,छत्तीसगढ़ का करमा लोक नृत्य में  पर्यावरण संरक्षण  का संदेश  छुपा हुआ है।,तेलगांना का गुसाड़ी नृत्य, झारखंड का उराव,राजस्थान  का गैर घुमरानृत्य, जम्मू कश्मीर  का धमाली,छत्तीसगढ़  का गौर सिंग नृत्य ,  प्रकृति एवं उसके महत्व को प्रतिपादित करने प्रकृति  के संरक्षण में विशेष भूमिका निभाती है। इस वैश्विक स्तर पर आयोजित इस महोत्सव में विभिन्न राज्यों से आए कलाकारों ने छत्तीसगढ़ को समझने के लिए विभिन्न स्टालों का भी बारीकी से अवलोकन किया।

जनसंपर्क विभाग द्वारा फोटो प्रदर्शनी के माध्यम से देश विदेश के कलाकारों ने छत्तीसगढ़ राज्य के पर्यटन ,पारंपरिक वेशभूषा ,गहने वाद्य यंत्रो से परिचित हुए ,कई कलाकार तो इस बात के लिए छत्तीसगढ़ की धरती को पावन धरती की संज्ञा दी जब उन्हें बताया गया कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चौदह वर्ष के अपने वनवास का अधिकांश समय छत्तीसगढ़ में ही गुजारा है । वे इस बात पर   नतमस्तक हुए जब उन्होंने सुना कि राम वन गमन पथ परियोजना के माध्यम से राम वन गमन पथ को आने वाले समय में   दर्शनीय तीर्थ की संज्ञा दी जा रही है।

प्रदेश के दूसरे अंतररष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में 1000 कलाकारों की उपस्थिति थी जिसमें  27 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेशों के 59 आदिवासी नर्तक दल शामिल हुए। जिसमे 63 विदेशी कलाकार थे। इस महोत्सव में हथकरघा वस्त्रों, हस्तशिल्प के स्टाल ,फूड एरिया  के स्टाल भी लगे हुए थे। इन स्टॉलो  का निरीक्षण  करते हुए दो आदिवासी बहुल राज्यो  छत्तीसगढ़ एवं झारखंड के मुख्यमंत्रियो ने पांरपरिक वाद्य यंत्र -"ठोड़का"और "तुरही" भी बजाया तो , पूर्व राज्यसभा सदस्य बीके हरिप्रसाद एवं युगांडा और पेलिस्टाईन के काउंसलर ने गौर मुकुट लगाकर ,मांदर की थाप देकर महोत्सव  के आदिवासी नृत्य महोत्सव के कलाकारो का उत्साह वर्धन  भी किया ।  आदिवासी संस्कृति के अनुरूप आदिवासी कलाकारों के पारंपरिक पोशाक, आभूषण, मोर पंख से बने मुकुट ढोल ,मजीरा ,जवारा कलश, चंग ,मृदंग को न केवल बारीकी से देखा बल्कि उसकी खूबियां भी बताई। छत्तीसगढ़ के हजारों लोगों ने अलग-अलग राज्यों एवं देशों से आए हुए आदिवासी संस्कृति  के फसल कटाई, विवाह ,पर्व, त्यौहार के मौके पर किए जाने वाले नृत्यो को खूब पसंद किया। रामायण, महाभारत जैसे प्रसंगों पर आधारित कथाओं पर कलाकारों द्वारा प्रस्तुत नृत्य से दर्शकों को पौराणिक संदर्भों की नई जानकारी मिली।

 छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के आदिवासियों के दल ने मादर की थाप के साथ  जब हाथों में अपने पारंपरिक वाद्य यंत्र के साथ ,हाथों में डंडा, मोर पंख, तीर कमान, भाला, बरछी लेकर जब अपने सधे हुए कदमो से मंच पर नृत्य किया तो दर्शक झूम उठे। दर्शकों  को तेलंगाना के गुसाड़ी   डीम्सा नृत्य, झारखंड का उरांव नृत्य   राजस्थान का गैर घुमरानृत्य   जम्मू कश्मीर का धमाली,छत्तीसगढ़ का गौर सिंग नृत्य , पर हाथो से ताली  की थाप  देते देखा गया। इसी प्रकार निकोबारी नृत्य, अंडमान और निकोबार, राजस्थान का स्वांग, गुजरात का-वासवा,झारखंड का-छाऊ,पंश्चिम बंगाल का-संथाली,मणिपुर  का-खरिंग खरग फेचक, लद्दाख  का-घा हानू,नागालैण्ड  कामाकहनिची, राजस्थान  कागारसिया, छत्तीसगढ़ काहारूल, करमा, झैंता, उतराखंड का-हरिण नृत्य को भी दर्शकों ने खूब बहुत पसंद किया। आदिवासी नृत्य महोत्सव में कलाकारों   ने  देश प्रेम के प्रसंगों को भी अपने  नृत्य में पिरोया । उन्होंने अपने वीर सैनिक , योद्धाओं के शौर्य को अपने नृत्य  में बखूबी प्रस्तुत किया।

 

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का आदिवासी समाज की भाषा संस्कृति लोक कला परंपरा की अमूल्य विरासत को पहचान देने एवं जनजातीय समुदाय की लोक कला और संस्कृति के संरक्षण के उद्देश्य से आयोजित देश-विदेश में चर्चित अंतरराष्ट्रीय जनजातीय नृत्य महोत्सव छत्तीसगढ़ के इतिहास  का  दूसरा सुनहरा पन्ना कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। सुखद बात तो यह रही अपने आथित्य से भाव विभोर छत्तीसगढ़ से अपनी सुनहरी यादों के साथ देश दुनिया के आदिवासी विदा हुए, वो कलाकार  छत्तीसगढ़ के इस जनजातीय समागम को शायद इतनी जल्दी भुला  न पाएँगे। बस कामना यही है कि आदिवासी संस्कृति की सुवास हरदम अक्षुण्ण रहे।

 

 


सतीश उपाध्याय

मनेंद्रगढ़, कोरिया छत्तीसगढ़

परिचय: नवसाक्षर साहित्य माला ऋचा प्रकाशन दिल्ली द्वारा एवं नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा दो पुस्तकों का प्रकाशन