संयोग से उनको शहर के भीड़-भाड़ वाले इलाके में जाना पड़ गया। ध्यान लगाने और मन को नियंत्रित करने में अभ्यस्त मुक्तेश्वर बाबा वहाँ ध्यान लगाने में असमर्थ महसूस किया। उन्होंने अपने मित्र सिद्धेश्वर राय से पुछा ’’ इतने शोरगूल में भी आप ध्यान कैसे लगा लेते हैं आपका ज्ञान भंडार भी भरा पुरा है। ’’ सिद्धेश्वर राय थोड़ी देर पहले धर की पूजा अर्चना में लीन थे।
सिद्धेश्वर राय ने अपने मित्र मुक्तेश्वर बाबा की तरफ पैनी दृष्टि डाली और कहा ’’ बस अभयस्त हो गया हूँ, प्रारम्भ के दिनों में हिमालय के शांत वातावरण में ध्यान लगाने की चेष्टा की थी, मगर असफल रहा। घर की यादों को दरकिनार नहीं कर पाया और अब यहाँ ध्यान में घर-परिवार की बात बाधा नहीं पहूँचाती है। ’’
मुक्तेश्वर बाबा ने ठंडी आहें मरते हुए कहा ’’ असली ध्यान तो हिमालय के शांत वातावरण में नहीं बल्कि शोरगुल-कोलहल वाले स्थान पर हैं। ’’
मुक्तेश्वर बाबा ने गृहस्थी का सुख त्यागने का खेद व्यक्त किया और कवि सिद्धेश्वर राय ने गृहस्थी सुख न त्यागने पर प्रसन्नता जाहिर की।
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राजीव कुमार
बोकारो, झारखण्ड