जग में होता रहता है।
फिर उठ कर चलने वाला ही,
जग में जीवन जीता है।
कभी उदासी, कभी निराशा,
कभी भँवर में फँसता है।
फेर समय का जो यह माने,
दुखी न होकर हँसता है।
दंश हार के,भूल बढ़े जो,
वो ही उन्नति करता है।
हार किसी को याद न रहती,
जीत विगुल जब बजता है।
इस जीवन में पुष्प खुशी का,
कांटों में ही खिलता है।
नहीं जिसे है दुख कांटों का,
सुख उसको ही मिलता हैं।
आने वाला कल है सुंदर,
जो इस धुन में रहता है।
मन में निज विश्वास जगा कर,
जतन खूब वो करता है।
शिप्रा सैनी (मौर्या)
जमशेदपुर