मेरे पति ने खून पसीना एक कर,इसे घर बनाया था...
आज इसी घर से मेरे बेटों ने,पलयान कराया है...
तुमको क्या पता ,मैंने कैसे घर बनाया है ?
गहने बेचकर मैंने तुमको,अफसर बनाया है...
चाँद सी बहू को मैंने,अपनी बेटी बनाया है..
मेरी ही बहू ने मुझे,घर से निकाला है...
दर-दर ठोकरें मिलीं,कफ़न भी नसीब न हुआ..
मेरी ममता का मुझको ये खूब सिला दिया...
घर से निकाल कर तुमने,मुझकोबेसहारा बनाया है...
मेरी ही गृहस्थी को तुमने,मुझसे छुड़ाया है...
सोचा था बहू आएगी,जन्मों का सुख पाऊँगी...
गृहस्थी वो सँवारेगी,घर को स्वर्ग बनाएगी...
मेरे ही घर को,अपना मन्दिर बनाएगी...
तुमने तो मुझको वृद्धालय दिखाया है...
मेरी ममता का मुझको ये सिला दिया...
- मिंकी मोहिनी गुप्ता
दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टिट्यूट
पिनाहट ( उत्तर प्रदेश)