यादें बचपन की

अरुणिता
द्वारा -
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 यादें बचपन की

होती अमूल्य निधि जीवन की

माँ के अंक के आगे

सभी गणितीय अंक फीके

अंगुली पकड़ के चले 

तुतलाकर बोलना सीखे

कपड़ों की ना सुध थी तन की

यादें बचपन की ।

दगड़े की मिट्टी

था श्रृंगार का पाउडर

रोज सुबह लगता

नहाने से डर

बस ये ही एक घड़ी थी

माँ से अनबन की

यादें बचपन की ।

अँधेरे से डरना

भागते-गाते रास्ता पार करना

भूतों की सुन कहानी

सोते हुए ओदड़ना

थपक कर फिर सुलाना

गजब दास्ताँ माँ के फन की

यादें बचपन की ।

रोते-रोते स्कूल जाना

खिलखिलाते घर को आना

था गुड़-रोटी का जमाना 

लगता छुट्टी का दिन सुहाना

खेलते रहते दिन भर

ना मिटती भूख मन की

यादें बचपन की ।

  होती अमूल्य निधि जीवन की ।।

 

                      - व्यग्र पाण्डेय 

   कर्मचारी कालोनी

बचपन स्कूल के पास, गंगापुर सिटी

                 सवाई माधोपुर (राजस्थान)

 

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