आओ बातें करें
हम नये वर्ष में प्रवेश कर गये हैं | लेकिन कोरोना नाम विषाणु अभी तक हमारे पीछे पड़ा हुआ है | पिछले दो वर्षों से इसने मानवता की नाक में दम कर रखा है | लेकिन हम मनुष्य हैं | हम युगों-युगों से इस तरह संकट जब-तक देखते और झेलते आ रहे हैं | हर बार की तरह इस बार भी विजय हम मनुष्यों की ही होगी कोरोना विषाणु की नहीं | हम मनुष्यों को ईश्वर ने इतना सक्षम बनाया है कि अभी तक पृथ्वी पर हमारा अस्तित्व कायम है | डायनासोर जैसे विशालकाय और बलशाली जीव तथा अन्य अनेक विलक्षण विलुप्त हो चुके हैं | लेकिन मनुष्य का अस्तिव पृथ्वी पर अभी भी कायम है | इसलिए हमें ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए और इस विषाणु का डटकर मुकाबला करना चाहिए |
अपने जीवन में कभी नीरसता और उदासी को स्थान नहीं देना चाहिए | इस प्रयास में साहित्य हमारा सहारा बनता है | अच्छा साहित्य हमें एक-दूसरे से जोड़ता है | हमारे मनों को और हमारे दिलों को जोड़ता है | ‘अरुणिता’ भी ऐसा ही एक छोटा सा प्रयास है | जो भौतिक रूप से दूर-दूर रहते हुए भी हमें समीपता का आभास कराता है |
आप ‘अरुणिता’ के विषय में क्या सोचते हैं ? क्या अपेक्षा रखते हैं ? हमें अपने ईमेल सन्देश के माध्यम से अवश्य अवगत करायें | नया वर्ष आपके लिए मंगलमय हो , ईश्वर से यही कामना है |
जय कुमार
(सम्पादक)