पूर्णता !
प्रतीक होती है
अंत की ,
असंख्य सम्भावनाओं,
कल्पनाओं से भरा
अधूरापन भी तो,
होता है ना
बेहद खूबसूरत !
घिरे हैं हम
न जाने,
कितनी अधूरी
प्रेम कहानियों से ,
रचा जिन्होंने
इतिहास,
बनाकर प्रेम की
मिसाल!
जो प्रतीत होती है
पूरी भी,
वह भी तो भीतर से
कहीं ना कहीं,
किसी सतह पर,
होती है
अधूरी ही!
प्रेम !
नहीं होता है पाना,
गर होता
तो ना होता कान्हा
राधा का दीवाना,
मरू सी तपती
भूमि को,
ना होती
जल की आस!
क्या हुआ?
जो प्रेम नहीं
पूरा होता है।
अधूरा चांद भी तो
बेहद खूबसूरत
होता है।
डॉ० मीनाक्षी गंगवार, प्रधानाचार्या
राजकीय बालिका हाई स्कूल
सोहरामऊ, उन्नाव