फूंक नहीं पाए एक भी छंद में प्राण।
वास्तु की बारीकियां देखने वाले
नहीं बना पाते सपनों का महल।
नौ सौ पच्चीस सहेलियां होती हैं जिनकी
बसा नहीं पाते अपना घर-बार
बैठ गया हो जिसके मन में कोई 'पूर्वग्रह'
उनकी आंखों में मिलता है अक्सर धुंधलापन।
मुहुर्त देखकर निकलने वालों का रास्ता
काट जाती हैं अक्सर बिल्लियां।
सदा सत्य बोलने वाले
जीत नहीं पाएंगे महाभारत।
और कागद की नाव पर सवार लोग
एक दिन डूबते नजर आएंगे।
मोती प्रसाद साहू
हवालबाग- अल्मोड़ा