छुपा किसी कोने में
एक फ़्रेम अन गढ़ सा
जब मिलेगी मनचाही
तस्वीर उसमें लगाऊँगी
और उसी आकार का
फ़्रेम भी गढ़ पूरा कर लूँगी
महकता हो प्रेम जिसमें
मन से आता तन तक
हो प्रीत के संग आदर भी
सरल करता सम्मान
सिमटी आँखों के कोटर
की बदरी छन छन करती
समाहित हो मन कानन में
और ह्रदय तप्त धरा पर शुचित
भाव भिगो भिगो जाए
पूर्णता की तृप्ति तक
धड़कन की रागिनी
मौन की आग़ोश सुन रहे हो
हम तुम आहिस्ता आहिस्ता
सवि शर्मा
देहरादून, उत्तराखंड