Ads Section

नवीनतम

10/recent/ticker-posts

तो तुम यहां भी

 रात्रि के तीसरे पहर

निकला उसे तलाशते हुए

गांव- नगर की सीमा पार करते हुए

दूर

कोसों दूर ...

निर्जन

जंगलों व पर्वतों के बीच मिली

लेटी हुई...

बिखरी पड़ी थीं

काली- काली लटें

उन्नत उरोजों के बीच से

बह रही थी एक ताजी नदी ...

शीशे की तरह

पिघली हुई देह...

सहसा शीतल हवाओं से

सिहर उठे रोम

विलुप्त हो गयीं सलवटें हरित शाटिका की

 अधर फड़फड़ाए

पक्षियों के कलरव में

फूट पड़े शब्द

तो, तुम यहां भी...


मोती प्रसाद साहू

 हवालबाग- अल्मोड़ा