ज्यूँ पतझड़ में शाखों से टूट कर
हवाओं की सरसराहट भी,
ह्रदय में सूनेपन का एहसास करा जाती है...
मन की गहराइयों में छुपा वो दर्द,
वक्त-बेवक्त हिलोरें लेने लगती है...
जब आँखों में आसमान-सा खालीपन हो,
न जाने क्यों शाम का दिया बुझा बुझा-सा नजर आता है...
तब डूबता हुआ सूरज चुपके से कहता है,
सुनो..,कुछ न सोचो कि अभी रात होने को है...
कल सुबह मुझे उगता हुआ देख लेना,
एक उम्मीद जाग जायेगी...
जीवन पथ पर आगे बढ़ने का हौसला हूँ मैं!
कि जब तक मैं उगता रहूँ,तुम भी चलती रहो...
बस...,चलती रहो!!
अनिता सिंह (शिक्षिका)
देवघर, झारखण्ड।