Ads Section

नवीनतम

10/recent/ticker-posts

माँ तो माँ है

 माँ के लिए सुखद जीवन के सपने

सपने ही हैं

बच्चों का आपस में लड़ना

बहुत अखरता है

सब सुनती-सहती चुप रहती

हृदय विदरता है

सच है कि उसके श्रम-पय से

बदन चमकता है

 

नहीं श्राप देती मरने का

खुद ही मरती है

इसीलिए माँ के चरणों में

धरती बसती है।

माँ के मैले आँचल में

छिपने की शोभा

देख देव भी रहे तरसते

पर माँ की ममता के आगे

 

उनके भाग्य कहाँ जागे?

मुझे तोतली बातों का

कुछ ध्यान नहीं

अंतर्मन में कितना झेला

इसका भी तो ज्ञान नहीं

मैनें तो ओखल मे देखा

गिरते मूसल को

धानों के दानों से विलगित

 

होते चावल को

घप-घप-घप-घप का सुर

यह सुर ही मेरे जीवन का

संगीत बना मृदु गीत बना ।

ज़रा देर भोजन में होती

चना- चबैना मुझको देती

शोर मचाना मेरा वैभव

वह तो मेरा मुख लख सोती

 

गंगा की निर्मल रेती पर

उसके श्रम से ही लहराती

तरबूजों की खेती।

त्याग दिया माँ ने सुख-साधन

मेरी खातिर

मुझको ही धन मान

थाल आरती सजाती

उस प्रकाश से अब तक

 

मैं आलोकित हूँ

माँ धन्य-धन्य तू धन्य

करूँ तेरा पद वंदन ।

-भूपेश प्रताप सिंह