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उदासी का मंज़र


ये कैसा गुबार है

छाया मन पर

उदासी का है मंज़र

तन मन पर

फंसे हैं मुश्किलों की

मझधार में

जीवन को किस ओर

ले जायें

इस दुनिया संसार में

रिश्तों की उधेड़बुन

परिवारों में मन मुटाव

चकल्लस सी लगती है

कभी कभी संसार रूपी

मायावी जाल में

हर पल हम रिश्तों में

मोहब्बत का दिया

जलाया करते हैं

कुछ लोग हैं जो

उन दियों को

बुझाया करते हैं

हर कोई लिए घूमता है

बनावटी मुखोटा चेहरों पर

समझ नहीं आता है

कौन झूठा है और

कौन सच।।

 

 

                   डॉ 0 रानी गुप्ता

सूरत गुजरात