मेरी अभिलाषा तुम हो
मुझको है जिस मन की चाहत
वो सुंदर अभिलाषा तुम हो।।
आऊं जब जब पास तुम्हारे
कुछ भी कह ना पाता हूँ
तेरे दो नयनों में
अपना सुंदर रूप में पाता हूँ।।
जितना डूबू, डूबता जाऊं
नित गोते लगता हूँ
एक तुमको पाने की चाहत में
अपना सर्वस्व गंवाता हूँ।।
मीठी मीठी बातें तेरी
मन को बहुत हर्षाती हैं
तेरी एक छवि की खातिर
रातें आँखों में कट जाती हैं।।
प्रेम विरह में विचलित मन को
तब मैं ये समझाता हूँ
जो मिल जाए सहज रूप से
वह प्रेम फिर प्रेम कहाँ!
जब तक तपे ना सोना अग्नि में
कब उसका है मोल बढ़ा
हीरा सदा चमकता रहता
कब उसका है मोल घटा!!
निश्छल प्रेम, अनमोल भाव सब से
नित उसका नूतन रूप सजा
मेरे तन मन की चाहत
मेरी अभिलाषा तुम हो।।
-डॉ० दीपा
असिस्टेंट प्रोफेसर
दिल्ली विश्वविद्यालय