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खुद्दारी नहीं जाती

 भले कोशिश करें पर वक़्त-ए-दुश्वारी नहीं जाती ।

हमारा जिस्म जाता है ये बीमारी नहीं जाती ।

 

तुम्हारे सदके हमने दिल हमारा रख दिया लेकिन,

तुम्हारे खूं में शामिल है, वो गद्दारी नहीं जाती ।

 

हमारी जान लेनी थी? बताते! जान ले लेते ,

छूरियां पीठ पर ए दोस्त यूँ मारी नहीं जाती ।

 

सलीका चाहिए कि दांव पर क्या-कुछ लगाना है,

चौसरों पर कभी यूँ द्रोपदी हारी नहीं जाती ।

 

ये सरकारें सुशासन के भले ही आंकड़े दें पर,

ये नौकरशाह,नेताओं की रंगदारी नहीं जाती ।

 

हमारी रीढ़ को आदत है नब्बे अंश रहने की,

खुदाओं के भी आगे अपनी खुद्दारी नहीं जाती ।

 

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विवेक दीक्षित