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उम्र के साथ

खामोशियां बढ़ती गई उम्र के साथ |

ज़मीर मरता गया हर जुर्म के साथ |

 

हाथ खाली ही रहे दिनरात कमाई के बाद |

वो शख्स बहुत याद आता रहा जुदाई के बाद |

 

यूं तो उनको कभी भूले नहीं हम आशनाई के बाद |

वो और भी याद आते रहे बेवफाई के बाद |

 

शोर ने इतना उदास कर दिया आज।

हम जीने लगे अपनी तन्हाई के साथ ।

 

क्या कहते हम अपनी  बेगुनाही में ।

जब सबूत ही मिला रिहाई के बाद |

 

कल सोच रहे थे हम  जब गहराई साथ |

उसकी सिसकियां सुनाई देने लगी शहनाई  के  साथ |

 

उसको समझ न पाए हम एक मुद्दत के बाद |

जिसको चाहा था हमने बड़ी शिद्दत के साथ |

 

बहुत ही मासूम लगा जब देखा उसको रुसवाई में ।

जानें क्यों उसने कुछ कहा नहीं अपनी सफाई में ।

 

प्रज्ञा पाण्डेय  (मनु)

वापी,  गुजरात