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वीरांगना झलकारी बाई

 झाँसी की रानी के समान, झाँसी की एक निशानी है।

है सदा शौर्य की प्यास जहाँ, पिघले लोहे सा पानी है।।

 

बचपन से लेकर मरने तक, मरती ही नहीं जवानी है।

वीरता लहू में बहती है, घर घर की यही कहानी है।।

 

बुन्देले तो बुन्देले हैं, जिनकी गाथा अलबेली है।

उस पर गर्वित बुन्देलखण्ड, हर कौम यहाँ बुन्देली है।।

 

मैं कथा सुनाऊँ यहाँ एक, योद्धा झलकारी बाई थी।

जो मर्द न थी पर मर्दों के, भी कान काटने आई थी।।

 

वह वीर व्रता अपनी रानी, झाँसी के लिए समर्पित थी।

लक्ष्मीबाई की सेना में, दुर्गा दल की सेनापति थी।।

 

बहू लक्ष्मी बाई सी, वीरता भवानी जैसी थी।

वय में भी लगभग थी समान, सूरत भी रानी जैसी थी।।

 

तलवार पकड़ते ही कर में, पुरजोर उछलने लगती थी।

जब युद्ध भूमि में उतरी तो, पैंतरे बदलने लगती थी।।

 

पानी सी गति पानी सी मति, वह पत्थर वायु तरल भी थी।

भारत के लिए सुधा सी, तो बैरी के लिए गरल ही थी।

 

है ग्राम भोजला झाँसी, का कह रहा कथा किलकारी की।

थे पिता सदोवा माता थी, जमुना देवी झलकारी की।।

 

सन अट्ठारह सौ तीस और, दिन था बाईस नवम्बर का।

धरती नाची थी झूम झूम, तन मन पुलकित था अम्बर का।।

 

उस दिन जमुना देवी ने थी, बालिका नहीं वीरता जनी।

कोरी कुल की कोमल कन्या, जो झाँसी की अस्मिता बनी।।

 

छः वर्ष बाद जमुना देवी, संसार छोड़ कर चली गईं।

कह गई पिता से पालो तुम, कर जोड़ मोड़ मुख चलीं गईं।।

 

फिर पिता पालने लगे उसे, चल तीर चला तलवार चला।

घोड़े पर बैठ लगाम पकड़, तू सीख सीख हर युद्धकला।

  

शाला गुरुकुल की सीख न थी, फिर भी कौशल सीखे सारे।

चर्चे चल पड़े वीरता के, गलियों में क्या द्वारे द्वारे।।

 

करने पड़ते थे सभी काम, घर की ऐसी लाचारी थी।

जंगल से ईंधन तक लाती, आखिर कुछ जिम्मेदारी थी।।

 

आ गया एक दिन एक बाघ,वन में  बाणों सा छूट पड़ा।

झपटा सहसा झलकारी पर, बन काल क्रूर सा टूट पड़ा।।

 

झलकारी लिए कुल्हाड़ी थी, देखा तो ऐसा वार किया।

बस उसी वार से एक बार, में ही हिंसक पशु मार दिया।।

 

बच गई लली बच गई आज, यह खबर पवन ले चले उड़े।

हो उठी वीरता पूजनीय, इस तरह कीर्ति के चरण बढ़े।।

 

झाँसी की सेना में योद्धा, पूरन तोपची सिपाही से।

हो गया विवाह वधू बाला, झलकारी का शुचिताई से।।

 

गौरी पूजा के अवसर पर, रानी का मान बढ़ाने को।

नारियाँ गाँव की जाती थीं, झाँसी पर भेंट चढ़ाने को।।

 

इस बार वधू झलकारी भी, चल पड़ी देखने रानी को।

यूँ लगा भाग्य ने भेज दिया, लक्ष्मी के पास भवानी को।।

 

देखी कद काठी रूप रंग, वीरता भरा यशगान सुना।

अपनी सी छवि पा रानी ने, सेविका बना कर मान चुना।।

 

रानी प्रसन्न थी सेवा से, विश्वास बढ़ा निर्देश किया।

रुचि देख वीर झलकारी को दुर्गा सेना में भेज दिया।।

 

धीरे-धीरे रण कला खुली, हथियार चलाने लगी सभी।

रानी अभ्यास कराने को, खुद भी आती थी कभी कभी।।

 

कद बढ़ा और पद भार बढ़ा, विश्वास बढ़ा नवनारी थी।

दुर्गासेना की सेनापति, बन चुकी आज झलकारी थी।।

 

बस उसी समय डलहौजी ने, जब हड़प नीति का दाँव चला।

रानी को भी सन्तान न थी, झाँसी पर धरने पाँव चला।।

 

कर चला कूच ह्यूरोज ओज, के साथ किले को घेर लिया।

झाँसी का विलय करो या रण, प्रस्ताव किले में भेज दिया।।

 

गोरों की ताकत के सम्मुख, हर ताकत बौनी लगती थी।

पर झाँसी के मंसूबों से, अनहोनी होनी लगती थी।।

 

प्रस्ताव सुना बलिवीरों ने, रानी से राय शुमारी की।

रणभूमि रक्तरंजित करने, की वीरों ने तैयारी की।।

 

  

रानी का उत्तर सुनने को , रुक गई साँस सरदारों की।

बिजली सी कौंध उठी धड़कन, बढ़ गई उड़ान सितारों की।।

 

दरबार भरा था वीरों का,सन्नद्ध सन्न थे दरबारी।

हर दृष्टि गड़ी थी रानी पर, झाँसी की रानी हुंकारी।।

 

सूरज पश्चिम में उगे या कि, हर तारा रोज पलट खाए।

धरती धँस उठे रसातल में, चाहे ब्रह्माण्ड सिमट जाए।।

 

तो भी जीते जी धरती माँ, माँ सी है कभी नहीं दूँगी।

कितने भी संकट टूट पड़ें, पर झाँसी कभी नहीं दूँगी।

 

निर्णय ले लिया उठो वीरो, आ गई घड़ी बलिदानों की।

इतना सुनते ही गूँज उठी, हाँ में हाँ वीर जवानों की।।

 

तन गईं किले की तलवारें, बुन्देलखण्ड कुलबुला उठा।

सूरज तक ठिठुर गया सुनकर, वीरत्व लिए जलजला उठा।।

 

तन गई तोप चल पड़ी कुमुक, बुन्देले वीर जवानों की।

दुर्गा सेना चल पड़ी बढ़ी अभिलाष  लिए बलिदानों की।।

 

जिस ओर अड़ा गोरों का बल, उस ओर बढ़ गए बुन्देले।

कायर दुश्मन की छाती को, झकझोर चढ़ गए बुन्देले।।

 

प्राणों को रखा हथेली पर, दुर्गा सेना का कहर ढहा।

दुश्मन के मरते वीरों ने, जब अबलाओं को बला कहा।।

 

इस छोर अड़ गई रानी तो, उस छोर चढ़ गई झलकारी।

इस ओर मौत का ताण्डव था, उस ओर काल की किलकारी।।

 

शोणित की प्यासी तलवारें, क्रूरता बढ़ाने लगीं वहीं।

दोनों चण्डी के चरणों में, नव मुण्ड चढ़ाने लगीं वहीं।।

 

अँगरेज मारते चौदह तो, दस बीस मारती झलकारी।

दस पाँच उड़ाते बुन्देले, फिर भी रानी सबसे भारी।।

 

गद्दार सिपाही दुल्हे ने, झाँसी को डाँवाडोल किया।

रखना था बन्द किले का जो, उस कवच द्वार को खोल दिया।।

 

पर खतरा देखा रानी पर, झलकारी नया खेल खेली।

अपनी पगड़ी रानी को दी, रानी की पगड़ी खुद ले ली।।

 

बोली चिन्ता छोड़ो रण की, दुश्मन को मैं सदमा दूँगी।

नकली रानी बन झाँसी की, इन गोरों को चकमा दूँगी।।

 

पति देव किले की रक्षा में, हो गए खेत झलकारी के।

लेकिन इस दुख को भुला दिया, दिन याद किए लाचारी के।।

 फिर कहा चली जाओ जल्दी, रानी जी तुम्हें बचाना है।

लो पवन वेग से उडो, यहाँ से अभी निकल कर जाना है।।

 

सकुशल रानी को भेज दिया, चुपचाप मगर फिर हुंकारी।।

गोरों ने रानी ही समझा, लेकिन थी असली झलकारी।।

 

फिर वीर बाँकुरी चण्डी सी, दुश्मन सेना पर टूट पड़ी।

सिंहनी खून की प्यासी सी, विष बुझे तीर सी छूट पड़ी।

 

गोरों ने समझ महारानी, झलकारी को जब घेर लिया।

सौ सौ दुश्मन के साथ भिड़ी बावन गोरों को ढेर किया।।

 

इतने में एक सिपाही ने, धमकी दी भेद बताने को।

गोली मारी झलकारी ने, पर लगी फिरंगी डाने को।।

 

खुल गया भेद कर लिया कैद, जब नकली रानी बाई तब।

ह्यूरोज न रोक सका रण में, खुद  करने लगा बड़ाई तब।।

 

पर यह तो पूरी पागल है, यह सोच उसी क्षण छोड़ दिया।

जैसे ही छूटी झलकारी, चुपचाप युद्ध को मोड़ दिया।

 

लग गई किले पर फिर से चढ़, तोपों से गोले बरसाने।

हिल उठी फौज अँग्रेजों की, भागो भागो सब चिल्लाने।।

 

धज्जियाँ उड़ाती काल बनी, मजबूत खम्भ से टूट गए।

बाँटती मौत थी तोपों से, गोरों के छक्के छूट गए।।

 

 

यमराज बन गई झलकारी, अनलिखी मौत सी लिखती थी।

बस मौत मौत बस मौत मौत, बस मौत मौत ही दिखती थी।

 

लेकिन दुश्मन की एक तोप, का गोला गिरा मुहाने पर।

हो गयी मौन वह वीर बली, सीधी चढ़ गई निशाने पर।।

 

थम उठीं टनन टन तलवारें, चूड़ियाँ खनन खन खन्न हुईं।

थम गया काल घिर गई घटा,रुक गई हवा सुन सन्न हुई।।

 

थी अन्तिम साँस रही तब तक, झलकारी हार नहीं मानी।

जब प्राण पखेरू हुए तभी, हथियारों ने हारी मानी।।

 

गिर पड़ी गाज सी धरती पर, हो गई रक्त से लाल मही।

कह उठी टिटहरी सुनो सुनो, झलकारी जग में नहीं रही।।

 

रो उठी धरा रो उठा गगन, रो उठा पवन सन्नाटा था।

लगता था आज वीरता को, कुछ कापुरुषों ने काटा था।।

 

हे धन्य धरा की धन्य सुते ! झाँसी की न्यारी नारी तू।

तू कालजयी वीरांग लली, भारत भर की झलकारी तू।।

 

तुझ पर गर्वित है ऋणी देश, भीषण रण की बलिहारी तू।

कवि प्राण नमन करता है कर, स्वीकार अरी झलकारी तू।।

 

बलि पथ पर निकले वीरों की, वीरता समर हो जाती है।

शुभ कीर्ति फैलती है जग में, जीवनी अमर हो जाती है।।

                                                          -गिरेन्द्र सिंह भदौरिया "प्राण"

                                                               इन्दौर , मध्य प्रदेश