कहाँ प्यार का अन्धापन
कहाँ किसी का स्वत्व प्रदर्शन
कहाँ तुम्हारा अपनापन
बेशक हो वह युग की रम्भा
या मधुपुर की लाल परी
सुन्दरता की रूपराशि या
हो ऋतुपति की रति उतरी
तेरे जिस नैसर्गिक गुण के
कारण सबको ठुकराया
वही आज आभूषण जैसा
खिल उठता है भोलापन
कहीं रूप पर नशा चढ़ा तो
बिगड़ी कहीं कहानी थी
कहीं रंग ही उतर चुका था
कातिल कहीं जवानी थी
अपने स्वार्थ साधकर सबने
अपने तीर चला मारे
एक तरफ था निर्मल मन तो
एक तरफ था काला मन
तेरे सिवा नहीं दुनिया मे
फूलों की शहजादी भी
तेरे ही अधीन कर दी है
जीवन की आजादी भी
तेरे सम्मोहन का जादू
उच्चाटन पर भारी है
पथ से नहीं भटकने देता
आखिर तेरा बाँकापन
जब से यह संकल्प लिया था
बाँह पकड़ कर चलने का
कोई भी विश्वास न टूटा
अनुबन्धों पर छलने का
मिलती हैं मन की उड़ान में
कई तितलियाँ अपनी सी
लेकिन मिलता नहीं किसी में
तुझसा अपना अपनापन
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण"
"वृत्तायन" 957 स्कीम नंबर - 51
इन्दौर (पिन- 452006) मप्र