मैं देख रहा राह लगातार अभी तक
हम रोज़ मिले रोज़ मिले और गले भी
अफ़सोस कि पैदा न हुआ प्यार अभी तक
अरमान बहुत और बहुत ख़्वाब हमारे
इक ने न लिया रूप व आकार अभी तक
छोटी न घड़ी एक, बड़ी रात अँधेरी
कोई न प्रकट चाँद न भिनसार अभी तक
जो देख लिया हुस्न गुनहगार हुआ मैं
ये और मज़ेदार गिरफ़्तार अभी तक
संघर्ष किये ख़ूब कि था राज बचाना
नृप ने न दिया एक पुरस्कार अभी तक
जो रोज़ नये खोज समाचार कभी दे
उसका न मिला एक समाचार अभी तक
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केशव शरण
वाराणसी, उत्तर प्रदेश