कपड़े वहां टंगेगे कैसे,
न कीलें हैं न खूँटा है।
हमने पानी उसमें रख्खा,
घड़ा जो सबसे कम फूटा है।
जीवन एक परीक्षा समझो,
सबका ही परचा छूटा है।
बाहर से जो अच्छा दिखता,
मुझको उसने ही लूटा है।
हम विश्वास करें किस किस पर,
हर कोई यहाँ झूटा है।
सच को झूठ समझते हैं सब,
विनय कहे गर दिल टूटा है।
-विनय बंसल
आगरा, उत्तर प्रदेश