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राही

कठिन  संघर्षो से भरी राह पर

निकल पड़ा  राही ये ठान कर

तब तक मंजिल नही पा लूँगा

घर लौटकर न जाऊँगा

मन में था कई बर्षो से यह बोझ

किसी में कुछ कह न सका

मन में थी यह बड़ी उलझन

घर को उम्मीदें थीं उस पर

कब तक मैं ऐसे बैठा रहता

निकल पड़ा एक अंजान सफर पर

मंजिल को पाने के लिए रास्ते

कुछ काटो भरे भी होंगे

जतन से उनको पार करना है

जब ही मिल पाएगी मंजिल

छोटी से जिंदगी में सफर लम्बा है

 मेहनतसे काम बड़ा करना है

सबका सपना पूरा करना है

पूनम गुप्ता

भोपाल, मध्यप्रदेश