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युद्ध के दुष्परिणाम

 

युद्ध के बीज से दुष्परिणाम

ही जन्म लेता है.

 

त्योरियां नहीं बदली

तो तय है अकल्पनीय विध्वंस.

हो भी रहा है,

दिख भी रहा है,

फिर भी मानवता के अंदर

का न जाने कैसे

जीवित है रावण और कंस.

 

अब भी आदमज़ाद न चेता

तो भय है हो न

आण्विक और रसायनपात.

तब असहाय मानस सांस रुकने तक

सहयोग को कराहता

रह जाएगा, भविष्य के गर्भ में

फिर बनेगा नया इतिहास.

 

हाय रे ,हृदयहीन नामर्द धरती!

वाह रे,नई मानवीय संस्कृति!

शांति पहल की तो बात दूर,

सारे भूमंडल मूंछें तान खड़ी,

लिए मानसिकता सड़ी,

आश्वासनों और दंगली नगाड़े

बजा कर रही राजनीति.

 

कोई नहीं करता चिंता

मानवीय शांति,संताप की

प्रश्नों का अंबार लगा अब

चक्र-व्यूह में फंसा अनंत.

धूं-धूं करते,स्वाहा होते

देख रहा वह नरकपात

ताउम्र रचित सपनों का अंत.

ललन प्रसाद सिंह

पटना, बिहार