सब पर प्यार लुटाती है,
सारी दुनिया के गुलशन को,
बेटी ही महकाती है ।
परियों सी होती है बेटी,
मुस्काती, इठलाती है,
जीवन की हर कठिनाई को,
हंसकर ही सह जाती है ।
अपने कोमल पंखों से,
छू गगन शौर्य दिखलाती है,
छा जाती वो विश्वपटल पर,
मैंरीकॉम बन जाती है ।
होती है जब बात आन की,
लक्ष्मीबाई बन जाती है,
शिरीषा और कल्पना बन,
अपना परचम लहराती है ।
ज्योति जलाकर शिक्षा की,
घर-घर प्रकाश फैलाती है,
अपनी त्याग, तपस्या से,
हर घर को स्वर्ग बनाती है ।
आन मान गौरव हेतु वो,
दीपदान कर जाती है,
सीता सावित्री अनुसूया बन,
त्याग मूर्ति कहलाती है ।
शक्ति स्वरूपा बिन किस,
देहरी द्वारे दीप जलाओगे ?
ना होगी बेटी इस जग में ,
बहू कहां से लाओगे?
डॉ0 मीनाक्षी गंगवार
प्रधानाचार्या , राजकीय बालिका हाई स्कूल
उन्नाव, उन्नाव उत्तर प्रदेश