आज बैठी हुई यह दुनिया
एक चिंगारी खत्म कर देगी
अपनी प्यारी रत्न वसुंधरा
अट्टहास कर रहा युद्ध का दानव
आज जार जार रोती मानवता
रक्त बह रहा जब मासूमों का यहां
देखों अश्रु बहा रहा आसमां
हे मानव क्यों झोंकते हो विश्व को
युद्ध की इस भीषण विभीषिका में
क्या मिलेगा रास्ते पर विनाश के
सिवाय मासूमों के आंसुओं के
ज्वालामुखी सदृश धधकता लावा
भस्म करने को व्याकुल सब कुछ
विनाश की कगार पर आ खड़ी हुई
सभ्यता,संस्कृति,अलौकिक धरोहर
आगाज़ हुआ मानवनिर्मित प्रलय का
खो जाता है अक्सर बचपन इसमें
कलाईयां भाई की,सिंदूर सुहागन का
प्रतीक्षारत सूने नयन हर माता के
अनंत महत्वाकांक्षाओं का खूनी समंदर
राजतिलक रक्तपात के सिंहासन पर
जब नहीं दे सकते तुम किसी को जीवन
क्यों करते फिर युद्ध में उनका विसर्जन
अतीत के पन्नों से नहीं सीखता मानव
जापान गवाह है युद्ध की बर्बरता का
विध्वंस समाज में बेजुबान भी मिट जाते
क्या पाओगे फल भीषण नरसंहार का
अलका शर्मा
शामली, उत्तर प्रदेश