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सारा जग अपराधी

 

स्वर्ग में ताले लटक रहे हैं,

सारा जग अपराधी है!

 

मानव भटक गया धरती पर,

होड़ लगी है गिरने की ।

भौतिकता के पागलपन में,

सुध न रही भव तिरने की ।

 

निर्माणों की अंधी ज़िद में,सिर्फ़ हुई बर्बादी है।

सारा जग अपराधी है!

 

सामानों में प्राण बसाए,

घूम रही हैं बस लाशें ।

घुला हुआ है ज़हर हवा में,

ज़हरीली हैं सब साँसें ।

 

गरल दौड़ता है नस-नस में,सबका मन उन्मादी है

सारा जग अपराधी है!

 

जीवों में भोजन दिखता है,

आँखों में बस वहशीपन।

सबकी गति इस युग में इक-सी,

भले साँप हो या चन्दन।

 

लिप्साएं नख-सिख व्यापी हैं,बस चोला वैरागी है।

सारा जग अपराधी है!

 

पद-पैसे के घोर नशे में,

झूम रहा माटी-ढेला।

नहीं कफ़न में जेब है लेकिन,

जुटा रहा धेला-धेला।

 

गैर-ज़रूरी में उलझा है,भूला जो बुनियादी है।

सारा जग अपराधी है!

-विवेक दीक्षित