विलक्षण प्रतिभा के धनी अनूठे गीतकार और शायर
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दीपक कुमार त्यागी
हमारे देश में हर क्षेत्र में विलक्षण प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, कमी है तो बस समय रहते हुए सक्षम लोगों के द्वारा प्रतिभाओं को पहचान कर उन्हें उचित मंच पर जीवन की दशा व दिशा को परिवर्तित करने वाले एक बहुत ही महत्वपूर्ण अवसर देने की है।
लेकिन देश-दुनिया में हमेशा कुछ ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं अवश्य होती हैं जो कि सर्वशक्तिमान ईश्वर के आशीर्वाद से विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी अपने बुलंद हौसलों के बलबूते अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो ही जाती है। देश की ऐसी ही एक बहुत ही बेहतरीन शख्सियत हैं कवि, शायर, गीतकार, लेखक शिवकुमार 'बिलगरामी'।
इनके निजी जीवन की बात करें इस शानदार व्यक्तित्व वाले इंसान शिवकुमार 'बिलगरामी' का जन्म 12 अक्टूबर, 1963 को एक आम साधारण परिवार की घरेलू महिला माता लक्ष्मी देवी पिता रघुबर सिंह की संतान के रूप में उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद की बिलग्राम तहसील के गांव महसोना मऊ ( कटरी ज़फ़रपुर ) में हुआ था, इनके दो भाई व चार बहनें हैं, जिसमें यह पांचवें नंबर की संतान हैं। इनके पिता खेती किसानी करके अपने परिवार का जीवन यापन करते थे, इनकी प्रारंभिक शिक्षा बी 'जी आर इंटर कालेज बिलग्राम' से हुई, बाद में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम ए किया। इनको प्रारंभिक जीवन से ही लेखन, शायरी आदि शौक था, अपने इस हुनर को यह छोटे-बड़े मंचों से समय-समय पर दिखाते रहे। लेकिन शिवकुमार 'बिलगरामी' के अपने इस हुनर को सार्वजनिक मंच पर पहचान वर्ष 2012 में दिल्ली हाट के एक कार्यक्रम में मिली, जहां उपस्थित अतिथियों, सहयोगियों व दर्शकों ने उनके हुनर की दिल खोलकर तारीफ की, जिसके पश्चात कवि व गीतकार के रूप में शिवकुमार 'बिलगरामी' को नितनये अवसर मिलते चले गये और जीवन पथ पर वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले गये, उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और
अपनी लगन व मेहनत के बलबूते शिवकुमार 'बिलगरामी' आज के दौर के देश के एक बहुचर्चित गीतकार और प्रतिष्ठित शायर हैं। वर्तमान में आप भारतीय संसद के लोकप्रिय सदन लोकसभा में संयुक्त निदेशक पद पर कार्यरत हैं और दिल्ली में निवास करते हैं।
शिवकुमार 'बिलगरामी' की हिन्दी, उर्दू , संस्कृत और अंग्रेज़ी भाषा पर बेहद मजबूत पकड़ हैं, इन्होंने इन सभी भाषाओं में विभिन्न काव्यों का सृजन किया है। वैसे तो आप मूलतः गीत और ग़ज़ल विधाओं में काव्य सृजन करते हैं लेकिन हिन्दी काव्य की अन्य विधाओं में भी आप बख़ूबी कलम चलाते हैं।
अभी तक इनके दो ग़ज़ल संग्रह 'नई कहकशां' और 'वो दो पल' नाम से प्रकाशित हो चुके हैं। 'नई कहकशां' हिंदी और उर्दू में द्विभाषी ग़ज़ल संग्रह है। 'वो दो पल' हिन्दी देवनागरी लिपि में प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह है, इस ग़ज़ल संग्रह को 'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' द्वारा वर्ष 2018 में प्रतिष्ठित 'अदम गोंडवी' सम्मान से नवाजा गया है। इनकी "नई कहकशां" और "वो दो पल" की कई ग़ज़लों को देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित ग़ज़ल गायकों के द्वारा भी गाया गया है, जिनमें से प्रमुख नाम इस प्रकार हैं- शाद ग़ुलाम अली , पं० अजय झा , रियाज़ खान (मुंबई), राजेश सिंह , सतीश मिश्रा, आख्या सिंह, कालू सिंह कमल , विजय पटनायक, ग़ुलाम साबिर इत्यादि। इनकी ग़ज़लों को म्यूजिक टॉवर (Musictower) यूट्यूब चैनल पर भी सुना जा सकता है।
एक शायर होने के साथ-साथ शिव कुमार बिलगरामी एक अच्छे गीतकार भी हैं। इनके लिखे गीतों को बहुत प्रसिद्धि मिली है। इनके लिखे एक गीत - "जयहिन्द वन्दे मातरम्" को अनुराधा पौडवाल, साधना सरगम, के एस चित्रा, जसपिंदर नरूला, हेमा सरदेसाई, महालक्ष्मी अय्यर, सुरेश वाडेकर, अभिजीत, शान और कैलाश खेर जैसे बॉलीवुड के प्रतिष्ठित गायकों ने अपनी सुरीली आवाज दी है।
इनके लिखे एक अन्य गीत "पृथ्वी मंथन" को उड़ीसा की 'लता मंगेशकर' कही जाने वाली 'सुस्मिता दास' ने अपनी सुरीली आवाज़ में ढालने का कार्य किया है। इस गीत को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। यह गीत यूट्यूब पर पृथ्वी मंथन (Prithvi Manthan) के नाम से सर्च कर सुना जा सकता है।
शिवकुमार 'बिलगरामी' द्वारा लिखी गई कुछ अन्य रचनाएं वर्तमान दौर के हिन्दी संस्कृत साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कृतियों में से एक हैं। श्री गणेश स्तुति, शिव स्तुति, दुर्गा स्तुति (जय जगदम्बे ), श्री राम स्तुति तथा श्री हनुमत् ललिताष्टकम् इनमें से प्रमुख रचनाएं हैं। उक्त रचनाओं में से अधिकतर को 'सुश्री आख्या सिंह' ने गाया है और ये संस्कार म्यूजिक (Sanskar Music) तथा म्यूजिक टॉवर (Musictower) यूट्यूब चैनलों पर उपलब्ध हैं । इनके अलावा यह विश्व के सभी ऑडियो प्लेटफॉर्म पर सुनी जा सकती हैं।
शिवकुमार 'बिलगरामी' को इनके साहित्यिक योगदान के लिए देश की कई प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है । इनके कुछ मशहूर शेर इस प्रकार हैं।
न तो अक्स हूं न वुजूद हूं मैं तो जश्न हूं किसी रूह का
मुझे आईनों में न देख तू मुझे ख़ुशबुओं में तलाश कर।
बात करने का सलीक़ा मैंने पाया जिसमें
इक वही शख़्स मुझे शहर में ख़ामोश मिला।
हंसते रहते हो ग़म-ओ-रंज छुपाने के लिए
तुम भी क्या ख़ूब पहेली हो ज़माने के लिए।
कांटो की नोक से जो मरहम लगा रहे हैं।
मेरी ज़बान में ऐसा तिलिस्म हो कोई
जिसे हसीन कहूं वो हसीन हो जाए।
शिवकुमार 'बिलगरामी' अपनी इस विलक्षण प्रतिभा को 'मॉं सरस्वती' दिया हुआ विशेष आशीर्वाद मानते हैं, वह कहते हैं कि मैं आज जीवन में जिस भी मुकाम पर पहुंचा हूं, वह मेरे माता-पिता, गुरुजनों, परिजनों, शुभचिंतकों की देन है।
।। जय हिन्द जय भारत ।।
।। मेरा भारत मेरी शान मेरी पहचान ।।
दीपक कुमार त्यागी / हस्तक्षेप
वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार, रचनाकार व राजनीतिक विश्लेषक