कुहू कुहू कोयल बोले।
प्रगति में अपने रंग घोले।।
मीठी तान से मन भी डोले।
प्रेयसी मन धक-धक बोले।।
बसंती आहट का है संदेश।
ऐसे में जियरा भयोरे भदेश।।
दर्द भरी ही वह राग सुनावे।
अंतर्मन को बहुत लुभावे।।
दर्द भरी वह राग सुनाती।
धर्मेंद्र की कलम है पुकारती।।
डॉ0 धर्मेंद्र सिंह दीप ठाकुर