सूरज ढलते ही
आसमां सूर्ख लाल
हो चले थे,
दोनों की चाहतें
बेशर्मी से परवान
चढ़ने लगे थे.
दोनों गाड़ी से उतर
पहाड़ियों के ढलान
वाली वादियों में
हरे घास पर
प्रकृति की गोद में
डुबकी लगा रहे थे.
सूरज अंधेरे के
सुखद आगोश में
समाने लगा था,
दिन भर सारे सृष्टि को
ऊर्जस्वित करते स्वयं
बलहीन हो चले थे.
हरितिमा के चिरंतन सुख
में डूबते प्रिय जोड़ी
शायद अंधकार से
समझौता कर चुके थे,
किसी के आंखों से
ओझल होते दृश्य
अब मात्र अंतर्मन
कथा बन गये थे.
ललन प्रसाद सिंह
पटना, बिहार