प्रथम मिले हम दोनों के नयन,
प्रणय-संबंध तेरा-मेरा अर्वाचीन।
प्रेम यह जन हेतु रहा मनभावन,
धरा के प्रेमी जोड़ों का चिर प्रेरण।
नवोढ़ाओं की मांग का भाव-पुंज,
उनकी हृदय-वीणा की अनुगूँज।
तेरा-मेरा प्रेम व्यष्टि -समष्टि मिलन,
जिसमें परमात्म को आत्म- समर्पण।
अवनि पर तुम हो सौंदर्य-उपमान,
स्त्री-पुरुष सुंदर,कहलाते चंद्र-वदन।
याद मुझे, तेरा ममत्व प्रेम-आमंत्रण,
संध्या-प्रहर,किशोर- वय नैन-संकेत।
कोमल धड़कनें करतीं प्रेम स्वीकृत,
तब से, यह प्रेम,अमरत्व मन-मोहित।
यह दिव्य प्रेम ही रखता है मर्यादित,
भू के प्रेम-पथिक मन को आलोकित।
स्नेह-मिलन, सुख-संवर्धन होता है,
परिणय-नियम से बनता है सुखद।
जीवन, पुरुषार्थ-रूप देता आनंद ,
स्नेह-सुभग उपवन, भाव-मकरंद।
हम दोनो, प्रणयी हैं अपरिणीत,
पर,बनाते हैं प्रेमको सत्य शाश्वत।
भूतल -प्रेम,दो मन-आत्म मिलन,
हमारी मुस्कान से होते पल्लवित।
मैं प्रेयसी, तेरी आभा से ही जीवित,
हमारी चेतना रखे जग को हर्षित।
-मीरा भारती
पटना,बिहार