मैनेजर- "संकल्प, तुम तो एक सप्ताह की छुट्टी लेकर पुश्तैनी मकान का बंटवारा करने के लिए गांव गए थे और दूसरे ही दिन वापस आ गए? क्या मकान का बंटवारा नहीं हुआ? क्या कोई कोर्ट-कचहरी वाली बात हो गई?"
संकल्प- "साहब, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मेरे दोनों बड़े भाइयों की इच्छा के अनुसार मां की एकमात्र निशानी जो पुश्तैनी मकान था उसे पचास लाख में बेच दिया और उस रकम को दोनों बड़े भाइयों के बीच आपस में बांट दिया। बस, बात हो गई पूरी तो मैं वापस चला आया।"
मैनेजर- "संकल्प, तो तुम्हारे हिस्से में क्या आया?"
संकल्प- "एक ऐसी मूर्ति जिसकी इस दुनिया में कोई कीमत ही नहीं आती जा सकती।"
मैनेजर- "क्या कोई सोने की मूर्ति थी तुम्हारे पुरखों के पास? बात कुछ समझ में नहीं आई! ऐसी कौन सी मूर्ति तुम्हारे हिस्से में आई?"
संकल्प- "त्याग, प्रेम, करुणा, सहानुभूति, समर्पण और आशीर्वाद की मूर्ति।"
मैनेजर-"मतलब?"
संकल्प- "मेरे हिस्से में मेरी मां आई।"
मैनेजर- "तो क्या बंटवारे में तुमने एक रूपया भी नहीं लिया?"
संकल्प- "नहीं, फूटी कौड़ी भी नहीं। मेरे पास तो अपनी मेहनत से बनाया हुआ घरौंदा है। सुशील पत्नी है। संस्कारी संतान है। सरकारी नौकरी है। बहुत बड़ी तनख्वाह है। घर में एक मां की ही कमी थी जो पूरी हो गई। अब जब भी मैं घर से बाहर निकलूंगा तब मां की दुआएं कवच बनकर मेरी रक्षा करेगी। मां की दुआओं में बड़ी ताकत होती है। मां की दुआ से बड़ी दौलत इस दुनिया में और कोई नहीं होती। मैं अपने आप को बड़ा खुशकिस्मत मानता हूं कि मेरे हिस्से में जिसके मुंह से आशीर्वाद की निरंतर धारा बहती है ऐसी ममता की मूर्ति मेरी मां आई है।"
मैनेजर- "सचमुच, तुम्हारे विचार काबिल-ए-तारीफ है। काश! सभी की संतान तुम्हारे जैसे आदर्श विचारों वाली होती तो आज हमारे देश में एक भी वृद्धाश्रम ना होता। संकल्प, आज मैं तुम्हारे आदर्श विचारों के आगे नतमस्तक होता हूं।"
किसी के सामने कभी ना झुकने वाले अभिमानी और संवेदन शून्य मैनेजर आज संकल्प की ऊंची भावना के आगे भावुक होकर नतमस्तक हो गए।
समीर उपाध्याय 'ललित'
मनहर पार्क:96/A
चोटीला:363520
जिला:सुरेंद्रनगर, गुजरात