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प्रेम

 

प्रेम के बिना सब कुछ व्यर्थ ही तो है ,

फिर प्रेम के नाम पर इतनी नफ़रत क्यों

प्रेम ही जीवन है प्रेम ही संसार है

फिर प्रेम से इतना परहेज क्यों

नफरतों को गढ़ना तो आसान है मित्रो

पर प्रेम  के नाम पर सृजन बहुत कठिन

प्रेम ही परिवार है प्रेम ही जीने का आधार

फिर प्रेम के नाम पर इतने इल्जाम क्यों

अथाह बीमारियों का इलाज सिर्फ प्रेम है

फिर प्रेम से ही आज इतना अलगाव क्यों

प्रेम से देखो तो संसार भी सुंदर लगता है

नफरतों से तो आसमान भी गुनहगार है

प्रेम की पराकाष्ठा ही तो राधा कृष्ण है

फिर सुख के आधार से ही वंचित क्यों ?

वर्षा वार्ष्णेय

अलीगढ़