बाबुल मैं हूँ...
अधखिली- सी एक कली!
फूल बनकर मुझको भी...
बगिया में अपने तुम,
खिल जाने दो न!
बाबुल मैं हूँ...
तेरे ही घोंसले की,
नन्हीं सी एक चिड़ी!
ऊँचे आसमान में पंख फैलाकर,
मुझको भी तो उड़ने दो न!
बाबुल मैं हूँ...
धुप तेरे ही आँगन की!
जीवन अपना प्रकाशित करने को...
मुझको भी स्वर्णिम छटा बनकर,
चारों ओर छिटक जाने दो न!
बाबुल मैं हूँ...
तेरी ही आत्मजा!
यूँ ना नज़र फेरो मुझसे...
बनाकर नूर अपने आँखों की,
मुझको भी चमक जाने दो न!
अनिता सिंह (शिक्षिका)
देवघर, झारखण्ड।