शिवांश और उमा की शादी हुए पांच साल हो गएं थे। लेकिन आंगन बच्चे की किलकारी के बिना सूना था। उमा ने अब भक्ति में मन लगा दिया था। शिवांश ऑफिस चला जाता और उमा अपना अधिकांश समय पूजा, पाठ, व्रत, जप और तप में व्यतित करती। श्रावण मास चल रहा था। उनकी सोसायटी के शिव मंदिर में लोगों ने १०८ लीटर दूध से शिवाभिषेक का आयोजन किया था। उमा को अभिषेक करने की बड़ी इच्छा थी। उसने शिवांश से कहा- "सुनिए जी, जल्दी तैयार हो जाइए। आज़ हमें शिवाभिषेक करना है।"
इतने में उनके द्वार पर आवाज़ सुनाई दी- "मां, दो दिन से कुछ खाया नहीं। कुछ दे दो।" शिवांश ने बाहर निकलकर देखा तो आठ-दस साल का एक अधनंगा मासूम बच्चा लाचार मुंह किए खड़ा था।
शिवांश ने पूछा- "बेटे, कहां रहते हो?"
बच्चा- "यहीं पास वाले मैदान में एक कोठरी में।"
शिवांश- "घर में और कौन-कौन है?"
बच्चा- "बाप था, लेकिन शराब पीकर मर गया। मां है और दादी अम्मा।"
शिवांश ने उमा से कहा-"चलो, मेरे साथ इस बच्चे के घर।"
उमा ने कहा- "लेकिन हमें तो अभिषेक के लिए....।"
शिवांश- "नहीं, पहले मेरे साथ चलो। आज़ का अभिषेक वहीं होगा।"
शिवांश और उमा उस बच्चे को लेकर उसकी कोठरी पर पहुंचे। जाकर देखा तो बच्चे की मां एक मैली-सी चादर से अपने बदन को ढंककर मायूस चेहरा लेकर बैठी थी। कोठरी बिल्कुल खाली थी। एक मटमैली खटिया पर बूढ़ी दादी अम्मा पड़ी-पड़ी कराह रही थी। यह देखकर शिवांश का दिल द्रवित हो गया। उसने उमा से कहा- "तुम यहीं ठहरो। मैं बाज़ार से कुछ सामान लेकर आता हूं।"
थोड़ी देर में शिवांश बाज़ार से दो-तीन साड़ियां, बच्चे के लिए कपड़े और खाने-पीने की बहुत सारी चीज़ें लेकर वापस आया। बच्चे की मां और दादी अम्मा में जैसे शक्ति का संचार हो गया। दादी अम्मा खटिया से खड़ी हो गई और बोली- "बेटे, भगवान तुम्हारी झोली खुशियों से भर दें। दूधो नहाओ और पूतों फलों।"
शिवांश एक आत्मसंतोष की भावना के साथ उमा को लेकर घर वापस आया। शाम को उमा की तबीयत कुछ बिगड़ गई। शिवांश उमा को लेकर अपने डॉक्टर मित्र के पास गया। डॉक्टर ने जांचकर कहा - "गजानन के आगमन की तैयारी कीजिए। उमा के उदर में गर्भ पल रहा है।"
शिवांश और उमा के चहरे ख़ुशी से खिल उठे। शिवांश- "उमा, यह हमने कल किए हुए अभिषेक और दादी अम्मा के दिल से निकली हुई दुआओं की फलश्रुति है। यही है सच्चा अभिषेक।"
आज़ उमा ने शिवांश से सच्चे अभिषेक के मर्म को जाना। मातृत्व के एहसास की ख़ुशी में उसकी आंखों से अश्रु छलक आएं।
- समीर उपाध्याय 'ललित'