साधकर पर पाखियों ने
नभ उड़ानों पर लिया।
क्या करें आखिर
कटे जो पेड़ थे
चल पड़े कुछ लोग
जो बस भेड़ थे
पिया अमृत घट जिन्होंने
कंठ भर कर विष दिया।
डालियों पर बाँध
अपनी हर व्यथा
लिख वनस्पतियों में
जीवन की कथा
स्वर मिलाकर के स्वरों से
दर्द सारा पी लिया।
चोंचों में भरकर
आशा की किरन
पाँव में भटकाव
आश्रय की चुभन
फड़फड़ाते रास्तों पर
गीत कोई गा लिया।
जयप्रकाश श्रीवास्तव
आई.सी.५ सैनिक सोसायटी शक्तिनगर
जबलपुर 482001