बरामदे के गमलों में
लचकती और चहकती
बेली के श्वेत सितारे जैसी पुष्प
हरी पत्तियों के बीच
छटाएं बिखेर रही थीं.
जितनी मोहक छवि बिखेरती
पुष्प और पत्तियों से आच्छादित
बेली के पौधे थे
उससे तनिक भी कम न थीं,
वहां की हवा के
कण-कण में सुगंध
घोलती खुशबू .
इस तप्त जेठ में
जीव और पौधों का
पानी सबसे अहम जरूरत
होती है,
ऐसे में सुबह-शाम गमलों को
पानी संजीवनी सा
त्राण देती हैं.
आज भी बेली
के साथ अन्य पौधे भी
पानी के फव्वारों से
लहलहा रही थीं.
रात भर बेली के पुष्पों
की महक पूरे घर के
जीवन को सुवासित,
पुष्पित और पल्लवित
कर रहा था.
सचमुच यहां खेतों सी
प्राणदायी जीवन की भूमिका
ये छोटे-छोटे गमले ही
निर्वहन कर रही थीं.
ललन प्रसाद सिंह
वसंत कुंज,नई दिल्ली-70