Ads Section

नवीनतम

10/recent/ticker-posts

सेमल पर बसंत


लुढक गया है चाँद

उतर कर धीरे धीरे

खपरैलों पर

झोपड़ी की झिरकी से

बिखरी गयी है

क्षीण आभा

सोयी आदिम बाला

खदानों से लौट

कर हाड़तोड़ श्रम

तपते बदन से टकराकर

पिघल गयी है चाँदनी

श्यामवर्ण तन

बेखबर है पसरा

आंगन में खड़ा सेमल

साक्षी है पुजारी सा

सुलगते से अंगार

फूलों से लकदक

लाल लाल रश्मि

करवट लेती

सुघड़ यौवना

मांदल की थाप सी

सांसों की थिरकन

मंद मंद बयार

गिरते सेमल फूल

अर्चना में उंडेलते हुऐ

ताल मिलाता सा

अनजान सा संगीत

दबी चिनगारियों में

फूटता सैलाब

तन का उच्छवास

उष्ण का आगमन

फैलता उजास

बीतता ऋतुराज

सेमल पर

लुटता हुआ बंसत

वी . पी . दिलेन्द्र

रिसर्च स्कालर

राजस्थान विश्वविद्यालय

जयपुर, राजस्थान