अनगिनत किरणें सजा
थाल में लाई उषा
धरा का मंगल हुई ।
लिपे आँगन धूप से
पक्षियों के मधुर गान
हो गया तम निर्वसन
दिशाएँ सब दीप्तिमान
अर्ध्य सूरज को चढ़ा
प्रकृति उज्जवल हुई ।
रँभाने गायें लगीं
बछड़ों की किलकारियाँ
नदी पनघट स्वर सधे
गीत गाती गृहणियाँ
अनावृत हो रात यह
आँख का काजल हुई ।
कलश मंदिर के धुले
ध्वजा सी है फहरती
फूल कलियों की हँसी
गंध बनकर विचरती
विविध रंगों में ढली
स्नेह का आँचल हुई ।
जयप्रकाश श्रीवास्तव
आई.सी.५ सैनिक सोसायटी शक्तिनगर
जबलपुर 482001