सोंधी सी खुशबू उड़ती हुई नाथून के रास्ते पेट को खींचने लगी थी.
"ऐ थोड़ा देगा हमको क्या..?दे दो ना भूखा है मैं."
पेट पकड़कर सोया था पर तुमने मुझे जबरन जगा दिया.गलती किया कि नहीं तुमने बोलो.
तू पागल है क्या..?ये तो मेरा काम है.
"तेरा "थोड़ी दे दोगे तो स्वाद बदल जाएगा मुँह का."
"हर चीज मुफ़्त में ही खाएगा क्या..?"
"जा भाग !बिना रोकड़ा कुछ नहीं मिलेगा."
"काम -वाम कर ,पैसे कमा और खरीद कर खा."
"पर काम क्या होता है...मुझे तो पता नहीं."
"काम वो होता है...!!!!,.अरे ये कहाँ फँस गया इसकी बातों में.सारे चने जल गए."
"तू एक ही बात जान ले...गाँधीजी के दर्शन हो जाए तो आ जाना."
"ठीक हैं....मैं जाता हूँ.पर वापस आऊँगा तो पक्का देना मुझे चबेना."
"हाँ!,हाँ!,.. जा जल्दी जा."
"लो मैं गाँधी की मुर्ति ही ले आया पास के मैदान में लगी थी...देखो कितना गंदा कर दिया सबने."
"अब रोज दर्शन करेंगे और चबेने भी खाएंगे."
तभी पुलिस की गाड़ी गाँधीजी की मुर्ति ढूँढती हुई पहुँच गई... "ये तुमने क्यों उखाड़ा वहाँ से...?"
"मैं तो इसलिए उखाड़ लाया कि ...इसने कहा था गाँधीजी के दर्शन से सब कुछ मिलता है."
"उल्टी -सीधी बात बताता है.चल बैठ गाड़ी में."
बेचारा चबेने वाला अपना दोष पुछता रहा...और वो मस्कुराकर चबेने चबाता रहा.
सपना चन्द्रा
कहलगाँव भागलपुर बिहार