कुचल दिया सपनों को।
क्या खुश हो गया तू,
रुला उसके अपनों को।
वो तो चली गई,
क्या तू खुश रह पाएगा?
तोड़कर एक आशियाना,
क्या अपना घर बसाएगा?
क्या गलती थी उसकी,
बस 'ना' बोलने की।
तेरे कुटिल इरादों को
'मना' करने की।
ज़ोर जो तेरा न चल सका,
तूने ऐसा काम किया।
जलाकर पंख उसके,
आबरू को नीलाम किया।
वो तो चली गई,
क्या अब सुकून पाएगा?
और क्या इंसाफ मिलेगा उसे?
क्या तू सज़ा पाएगा?
- दीक्षा शर्मा
गोरखपुर,उत्तर प्रदेश