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यही सच है

            दोपहर के लगभग बारह बजने को आए थे परन्तु अब तक इस मुक्तिधाम में ना कोई शव लाया गया था और ना उस शव के पीछे रोते, बिलखते, छाती पीटते हुए सगे संबंधी  ही आए थे. इस बात से मुक्तिधाम में बना चबूतरा बड़ा प्रसन्न था कि आज उसे अब तक ना कोई रूदन कलाप दिखाई दिया है और ना ही सुनाई वरना प्रति दिन इस समय तक दो चार शव तो इस मुक्तिधाम में आ ही जाते हैं. जब भी किसी मृत व्यक्ति के संग उसके परिजन आते, पूरा मुक्तिधाम उनकी विलाप और संताप से दहल उठता. बेचारे चबूतरे को ग्लानि होती, उसके भीतर से आह निकलती और वह स्वयं को कोसता कि उसका निर्माण हुआ भी तो कैसे दुखद कार्य के लिए. वह पश्चाताप से भर जाता जब उसपर शव रख कर जलाया जाता और उस मृतक के सगे संबंधी फूट-फूट कर रोते.

   इधर चबूतरे से कुछ ही दूर पर बैठा लकड़ी टाल का मालिक इस बात को लेकर परेशान हैं कि अब तक मुक्तिधाम में कोई शव लाया क्यों नहीं गया...!, आधा दिन गुजरने को है और उसके लकड़ी की बोहनी तक नहीं हुई है. वह झुंझलाते हुए अपने नौकर कल्लू से बोला-

   "अबे आज यम लोक में हड़ताल है क्या बे, जो अब तक साला एक भी लाश नहीं लाया गया है." 

   अपने मालिक से यह सुन कल्लू अपनी बत्तीसी दिखाते हुए बोला-

   "सेठ जी कैसी बातें करते हैं भला वहां भी कभी छुट्टी या हड़ताल होती है क्या...? इतना बड़ा शहर है किसी ना किसी की तो मौत जरूर हुई होगी और हमारे इलाके में तो हर रोज दो चार मरते ही है थोड़ी देर इंतजार तो करिए."

   कल्लू और उसके मालिक की बातें सुन चबूतरा अपने अगल-बगल खड़े नीम और बूढ़े बरगद के वृक्षों से बोला-

   " देखो यह सेठ कैसे किसी के मरने का इंतजार कर रहा है. ये कैसा दुष्ट व स्वार्थी प्राणी है, किसी की हानी पर अपना मुनाफा तलाश रहा है."

   इस बात पर नीम का पेड़ भी अफसोस जाहिर करते हुए बोला- " हां यह सेठ कितना स्वार्थी है. इस दुनियां में अपने लाभ के लिए ये इंसान कितना स्वकेंद्रित हो जाता है."  

   नीम के पेड़ और चबूतरे की बातें सुन कर विशाल बूढ़ा बरगद व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ बोला-

   " अरे तुम दोनों अपना जी क्यों जलाते हो, यह दुनियां और इंसान सदियों से ऐसे ही हैं."

   तभी उन्हें "राम नाम सत्य है" की ध्वनि सुनाई पड़ी और बूढ़ा बरगद हंसते हुए बोला- "लो इस सेठ की मुराद पूरी हो गई."

  चबूतरा दुखी हो गया और लकड़ी टाल का मालिक व कल्लू के चहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. शव यात्रा किसी महिला की थी उसकी अर्थी को कांधे से उतारते ही उस महिला का पति स्वयं को रोक नहीं पाया और कुछ इस तरह से विलाप करने लगा कि सभी की आंखें नम हो गई. वह बार बार बस यही दोहरा रहा था कि "श्यामली तेरे बिना मेरा यह जीवन व्यर्थ है, मैं तेरे बगैर जी के क्या करूंगा, मैं भी मर जाऊंगा." और उस महिला का जवान बेटा एक शिशु की भांति अपनी मां के शव से लिपट-लिपट कर रो रहा था और वहां उपस्थित उनके सगे संबंधी, नाते-रिश्तेदार, भाई बंध, दोस्त यार उन्हें समझाने का प्रयत्न कर रहे थे कि यह तो विधि का विधान है.

   बूढ़ा बरगद यह सब स्वांग देख मंद-मंद मुस्कुराने लगा. बूढ़े बरगद को इस तरह दोनों पिता पुत्र के दुख पर मुस्कुराता देख चबूतरा चिढ़ गया और बोला-

   " बरगद दादा आप कितने निष्ठुर है बिल्कुल उस कल्लू और उसके सेठ की तरह. एक पति ने अपनी अर्धांगिनी, अपनी संगिनी खो दी है जिसके संग उसका जीवन भर का साथ था. एक पुत्र ने अपनी जननी को खो दिया है जिसने उसे जन्म दिया और इस धरती में लेकर आई और आप उनकी इस अथाह दु:ख की घड़ी में हंस रहे हैं... मुस्कुरा रहे हैं."

   नीम का पेड़ भी बोला-

   "हां दादा यह सही नहीं है. किसी के शोक पर हंसना शोभा नहीं देता, यदि हम किसी का दुख दूर नहीं कर सकते तो हमें उसके दुख का उपहास भी नहीं करना चाहिए. देखिए उस व्यक्ति को अपनी पत्नी के वियोग में किस तरह आंसू बहा रहा है, आज से पहली मैंने कभी किसी पुरुष को इस तरह रोते नहीं देखा. उस स्त्री के पुत्र को देखिए कैसे मां-मां कह कर शव से लिपट रहा है."

     नीम के पेड़ और चबूतरे से यह सब सुन अनुभवी बूढ़ा बरगद हंसते हुए बोला - " मैं इनके दुख पर नहीं हंस रहा हूं, मैं तो हंस रहा हूं मनुष्य के दोहरे व्यक्तित्व और वक्त के साथ बदलते उसके चेहरे के मुखौटे पर."

     बूढ़े बरगद ने जो कहा ना तो चबूतरे के पल्ले पड़ा और ना ही नीम के पेड़ को ही कुछ समझ आया. तभी उस स्त्री के चिता को उसके बेटे ने मुखाग्नि दे दी, धूं धूं करके जलती चिता की लौ की तपिश और उस स्त्री के पति और पुत्र के विलाप से पूरा मुक्तिधाम दहल उठा‌. कुछ ही देर में नश्वर शरीर जल कर राख हो गया और चिता के शांत होते ही सभी वहां से चले गए. चबूतरा,नीम का पेड़ और बरगद ने चुप्पी साध ली.

     दूसरे दिन चबूतरे ने दुखी होते हुए नीम के पेड़ से कहा-

     "नीम चाचा जरा बाहर देख कर बताईए ना उस महिला के पति और बेटा दिख रहे हैं क्या?"

     नीम का पेड़ बोला-"मेरी नजरें बाहर तक तो जाती है लेकिन उस महिला के घर तक नहीं. बरगद दादा आप ही बता

 दीजिए क्या आपको वो दोनों पिता पुत्र दिखाई दे रहे हैं."

     बरगद अपनी नजरें दौड़ाता हुआ बोला- "नहीं मुझे तो वह दोनों अपने घर के बाहर दिखाई नहीं दे रहे हैं." 

     यह सुन चबूतरा बोला-" दादा मुझे लगता है अब वह आदमी अपनी पत्नी के विरह में मर जाएगा या आत्महत्या कर लेगा और उसका बेटा ज़रूर यहां से कही दूर चला जाएगा."

    बरगद ने कोई जवाब नहीं दिया. इस घटना के बाद से ही चबूतरा और नीम का पेड़ उदास रहने लगे और दोनों रोज़ बरगद से पिता-पुत्र का हालचाल पूछने लगे. जब बरगद कहता कि सब सामान्य है, दोनों पिता पुत्र प्रसन्न हैं तो यह सुन ना चबूतरे को विश्वास होता और ना ही नीम के पेड़ को दोनो को लगता बरगद दादा उन्हें खुश करने के लिए झूठी कहानी गढ़ कर सुनाते हैं. इस प्रकार छः महीना बीत गया. एक दिन चबूतरे ने कहा दादा आज देख कर बताओ दोनों पिता पुत्र क्या कर रहे हैं. बरगद ने कहा आज पिता ने बेटे के लिए न‌ई बाइक खरीदी है अपनी पत्नी के इंश्योरेंस के रूपयों से और बेटा उस बाइक में अपने मित्रों के संग पार्टी के लिए जा रहा रहा है.  

    बरगद का इतना कहना था कि चबूतरा गुस्से से बोला-"दादा आप हर रोज मनगढ़ंत कहानियां क्यों सुनाते हैं. हम बाहर देख नहीं पाते इसका मतलब यह नहीं कि आप जो भी कहेंगे हम मान लेंगे. उस दिन के पश्चात ना चबूतरे ने और ना ही नीम के पेड़ ने बरगद से उनके बारे में कुछ पूछा और ना ही जानना चाहा,बस उनके दुःख और पीड़ा का विचार कर उदास रहते. यूं ही एक वर्ष बीत गया. एक दिन ढ़ोल- नगाड़े, बाजे गाजे और शहनाईयों की आवाज सुन चबूतरा बोला-

    "नीम चाचा यह शोर किस बात की है."

    नीम का पेड़ बोला-" किसी की शादी हो रही है, बारात जा रही है."  

    "किसकी बारात है." चबूतरे ने पूछा

    "मुझे दिखाई नहीं दे रहा बरगद दादा आप ही बता दीजिए ना किसकी बारात जा रही है."

    बरगद ने कोई जवाब नहीं दिया वह शांत ही रहा तो चबूतरे कहा-"दादा बताओ ना किसकी बारात है."

    बरगद गंभीर होते हुए बोला- "उस स्त्री के पति की जिसे तुम दोनों हमेशा याद करके दुखी हुआ करते हो, वह आदमी दूसरी शादी करने जा रहा है."

    यह सुनने के पश्चात भी दोनों को उस बात पर यकीन नहीं हुआ. बरगद ने दोनों को बहुत समझाने का प्रयत्न किया कि दुनियां ऐसे ही चलती है पर दोनों यह मानने को तैयार नहीं थे, तभी मुक्तिधाम में एक शव लाया गया, यह शव किसी और का नहीं बल्कि लकड़ी टाल के मालिक का था. कल्लू अपने सेठ जी कि मृत्यु पर सिर पीटता हुआ रो रहा था और

 सेठ का बेटा तो उस दिवंगत महिला के बेटे से भी और अधिक रो रहा था.

    चबूतरे और नीम के पेड़ को लगा अब यह लकड़ी टाल बंद हो जाएगा, कल्लू दोबारा अब कभी इस टाल में नहीं आएगा लेकिन तेरहवां दिन सेठ के बेटे ने आकर टाल खोल लिया और जो कल्लू उस दिन अपने सेठ जी की मृत्यु पर दहाड़े मार कर रो रहा था, आज अपने नए सेठ की जी हुजूरी में लगा हुआ था. यह दृश्य देख कर पूरे मुक्तिधाम में सन्नाटा छा गया. चबूतरे और नीम के पेड़ को बरगद की कही बातों में सच्चाई नज़र आने लगी और दोनों यह भी समझ ग‌ए कि किसी भी सगे संबंधी के आंख मूंद लेने या साथ छूट जाने पर ना कोई मरता है और ना ही जीवन रुकता है. दुनियां अपनी ही गति से चलती ही रहती है. 

प्रेमलता यदु

बिलासपुर, छत्तीसगढ़