हृदय में आजभी स्पंदन करती झलकियां
आंगन को गोबर सेस्वच्छ करती मां हमारी
याद आती है वो कच्चे घरों की दमदार दीवाली
घर आंगन को नव अल्पनाओं से सजाकर
खडिया के घोल से खूबसूरत रंगोली बनाकर
कल्पनाओं में सपनों के रंग भरती हुई बहन बावली
याद आती है वो कच्चे घरों की दमदार दीवाली
वातावरण से आती हुई सोंधी-सोंधी सी खुशबू
पूरी पकवान तलकर सुबह से लगी हुई मां की आरजू
मिट्टी के दिये,सरसों का तेल और रुई की बाती
याद आती है वो कच्चे घरों की दमदार दीवाली
खेतों में बने हुए अपने देवताओं को पूजना
खाना बनाकर सबसे पहले गरीबों के घर भेजना
खील बताशों से पूजन नहीं कोई महंगी मिठाई
याद आती है वो कच्चे घरों की दमदार दीवाली
दिलों में ना कलुषता ना वैमनस्यता की दुर्भावना
स्नेहिल प्रेम सुधा बरसाती तब लोगों की शुद्ध भावना
कितनी प्यारी वात्सल्य सागर से परिपूर्ण दुनिया थी हमारी
याद आती है वो कच्चे घरों की दमदार दीवाली
अलका शर्मा
शामली, उत्तर प्रदेश