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नारी होना

वह कोई चिड़िया नहीं,

जो पिंजरे में कैद कर ली जाये,

वह कोई बंधक नहीं,

जो किसी घर में बँध कर दी जाये,

वह त्याग-बलिदान है,

नारी से ही जग का कल्याण है;

साड़ी उसका पाश नहीं,

घूँघट से सारी दुनिया देखी, उसने

नारी होना, कोई अभिशाप नहीं,

पिंजरे में कैद रहे,

गूँगी बन सब सहती जाये,

वह नारी, कोई मर्दों की दास नहीं,

वह बंधक नहीं,

जो लज्जा की जंजीरों में जकड़े,

नारी है, वह कोई जिन्दा लाश नहीं,

गृहस्थी में उलझी,

शील-गुणों की रक्षा करती,

समाज के संस्कारों की पालक बने,

सारे बंधन उसके,

नारी को अबला बतलाकर

पौरुष उसका शोषण करता रहे,

उसे न लड़ने दो,

उसे न आगे बड़ने दो,

उसको कुचलो, जुत्तों में सड़ने दो,

कहनेवालों, सुनो! ज़रा

नारी को आजाद करो,

उसको अपने मन की सुनने दो,

नारी दुर्गा, नारी शक्ति

उसको बंधन से मुक्त करो,

उन्मुक्त गगन में उसको उड़ने दो,

है चिड़िया, गर वह

सारा आकाश उसे दे दो,

उसके पंखों के बंधन को खुलने दो।

 

अनिल कुमार केसरी,

वरिष्ठ अध्यापक हिन्दी,

ग्राम देई, जिला बूंदी, राजस्थान