पर छत की अब भी है कोशिश,
चौबारे न बटने पाएं,
छत से ही विद्रोह कर रहीं हैं ,कद से ऊंची दीवारें,
अगर नाव ही टूटी हो तो क्या कर पाएंगी पतवारें,
चूक ढूंढते है दूजों में लेकिन ख़ुद ही चूक रहे हैं,
रिश्ते-नाते रेत सरीखे सब हाँथों से छूट रहे हैं,
मेरे घर की सभी लाइटें,
बटवारे में बटी हुई हैं,
पर दीपक की अब भी कोशिश,
उजियारे न बटने पाएं,
दीवारों की खींचतान ने छत में कई दरारें कर दीं,
छोटी-छोटी सी बातों ने बड़ी-बड़ी तकरारें कर दीं,
मर्ज़ी के रंगों में घर के पर्दे- खिड़की रंगे हुए है,
चाह रहेहैं फलना लेकिन सभी जड़ों से कटे हुए हैं
मेरे घर की धूप-बातियां,
बटवारे में बटी हुई हैं,
पर मन्दिर की अब भी कोशिश,
जयकारे न बटने पाएं,
विवेक दीक्षित
राजकीय बालिका हाई स्कूल सोहरामऊ
उन्नाव, उत्तर प्रदेश