जिसके पास दर्जनों उत्कृष्ट भाषाएँ हैं | इन भाषाओं में रचा गया है अनमोल साहित्य | इनमें संस्कृत और संस्कृत साहित्य तो बेजोड़ है | हमारे पास एक सनातन धर्म है जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की बात करता है | एक अति प्राचीन जैन धर्म है जो ’जीओ और जीनो दो’ का दर्शन देता है | हमारा धर्म स्वयं में विज्ञान भी है या कहिये कि विज्ञान ही है | हमारी धार्मिक मान्यताएँ किसी को कष्ट नहीं पहुँचाती | मनुष्य तो क्या जीव मात्र को भी नहीं | हमारी संस्कृति प्रकृति में रची-बसी है | ऐसा भी कह सकते हैं कि प्रकृति ही हमारी संस्कृति है | हमारे लिए नदी, पहाड़ और वृक्ष पूजनीय हैं | हमारे लिए तुलसी जैसे औषधीय पौधे भी आदरणीय हैं | हम सूर्य को नमस्कार करते हैं | चन्द्रमा से प्रेम करते हैं | हम तारों और नक्षत्रों की भाषा को समझने की चेष्टा करते हैं | उनके रहस्यों को सुलझाने का प्रयास करते हैं | हमारे ऋषि-मुनि केवल आराधना करना ही नहीं जानते वें साधना करना भी जानते हैं | वें शासकों का मार्ग प्रशस्त करते हैं | उनकी शिक्षा प्रणाली अद्भुत रही है जो राजाओं के मन को धन-सम्पदा और भोग की इच्छा से मुक्त कर सकती है | फिर उनके लिए वैभव-युक्त भवन और वन्य-जीवन में कोई भेद नहीं रह जाता |
हमारा अस्तित्व आज भी इस विश्व में है क्योंकि हमारी जड़ें बहुत गहरी और दृढ हैं | हमारे पास आगे के लिए बहुत कुछ है और जब हम पीछे पलटकर देखते हैं तो भी हमारे पास इतना है कि जो हमारे साथ-साथ दुनिया को भी आगे ले जाने के लिए पर्याप्त है | और जिन देशों के पास ये सब नहीं है वो अशान्त है, अस्थिर हैं, भटक रहे हैं | उन्हें पता ही नहीं कि उन्हें चाहिए क्या ? उनकी पहचान क्या है ? वो किस बात के लिए रक्त बहा रहें हैं | वो सबको अपने जैसा बना देना चाहते हैं लेकिन वो खुद कैसे हैं ये उन्हें नहीं पता | आज नहीं तो कल विश्व को हमारे पीछे आना ही होगा क्योंकि हम भारतवर्ष की सन्तान हैं और हम पूरे विश्व को अपना परिवार मानते हैं |
-जय कुमार
सम्पादक